आँख में ख़्वाब ज़माने से अलग रक्खा है
आँख में ख़्वाब ज़माने से अलग रक्खा है
अक्स को आइना-ख़ाने से अलग रक्खा है
घर में गुल-दान सजाए हैं तिरी आमद पर
और इक फूल बहाने से अलग रक्खा है
कुछ हवा में भी चलाने के लिए रक्खा जाए
इस लिए तीर निशाने से अलग रक्खा है
उस के होंटों को नहीं आँख को दी है तरजीह
प्यास को प्यास बुझाने से अलग रक्खा है
ग़ैर-मुमकिन है किसी और के हाथ आ जाए
वो ख़ज़ाना जो ख़ज़ाने से अलग रक्खा है
इक हवा सी कहीं बाँधी है छुपाने के लिए
इक तमाशा सा लगाने से अलग रक्खा है
ख़्वाब ही ख़्वाब में ता'मीर किया है 'आज़र'
घर को बुनियाद उठाने से अलग रक्खा है
(1024) Peoples Rate This