मैं ग़र्क़ हो रहा था कि तूफ़ान-ए-इश्क़ ने
इक मौज-ए-बे-क़रार को साहिल बना दिया
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ऐ इश्क़ तू ने वाक़िफ़-ए-मंज़िल बना दिया
मय-ए-कौसर का असर चश्म-ए-सियह-फ़ाम में है
मायूस-ए-अज़ल हूँ ये माना नाकाम-ए-तमन्ना रहना है
ये भीगी रात ये ठंडा समाँ ये कैफ़-ए-बहार
आग़ाज़-ए-मोहब्बत से अंजाम-ए-मोहब्बत तक
शबाब ढलते ही आई पीरी मआ'ल पर अब नज़र हुई है
कूचा-गर्दी में जवानी जाएगी
वक़्त-ए-रुख़्सत तसल्लियाँ दे कर
फिर ए'तिबार-ए-इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा
क्या कहिए दास्तान-ए-तमन्ना बदल गई
आरज़ू लुत्फ़ तलब इश्क़ सरासर नाकाम
क्या जाने किस ख़याल से छोड़ा प हाल-ए-ज़ार