असर-ए-इश्क़ से हूँ सूरत-ए-शम्अ ख़ामोश
ये मुरक़्क़ा है मिरी हसरत-ए-गोयाई का
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मैं ग़र्क़ हो रहा था कि तूफ़ान-ए-इश्क़ ने
हुस्न-ए-ख़ुद-बीं को हुआ और सिवा नाज़-ए-हिजाब
हम को बेचैन किए जाते हैं
तमकीं है और हुस्न-ए-गरेबाँ है और हम
आरज़ू लुत्फ़ तलब इश्क़ सरासर नाकाम
कूचा-गर्दी में जवानी जाएगी
ये भीगी रात ये ठंडा समाँ ये कैफ़-ए-बहार
मय-ए-कौसर का असर चश्म-ए-सियह-फ़ाम में है
आग़ाज़-ए-मोहब्बत से अंजाम-ए-मोहब्बत तक
वक़्त-ए-रुख़्सत तसल्लियाँ दे कर
शबाब ढलते ही आई पीरी मआ'ल पर अब नज़र हुई है