आरज़ू लुत्फ़ तलब इश्क़ सरासर नाकाम
मुब्तला ज़िंदगी-ए-दिल इन्हीं औहाम में है
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ऐ इश्क़ तू ने वाक़िफ़-ए-मंज़िल बना दिया
हुस्न-ए-ख़ुद-बीं को हुआ और सिवा नाज़-ए-हिजाब
मायूस-ए-अज़ल हूँ ये माना नाकाम-ए-तमन्ना रहना है
क्या कहिए दास्तान-ए-तमन्ना बदल गई
मैं ग़र्क़ हो रहा था कि तूफ़ान-ए-इश्क़ ने
तमकीं है और हुस्न-ए-गरेबाँ है और हम
मय-ए-कौसर का असर चश्म-ए-सियह-फ़ाम में है
कूचा-गर्दी में जवानी जाएगी
हम को बेचैन किए जाते हैं
क्या जाने किस ख़याल से छोड़ा प हाल-ए-ज़ार