यारब तू मुझे मेरे गुनाहों की सज़ा दे
या मुझ को गुनाहों के लिए अपनी रज़ा दे
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डाइरी
सब कुछ झूट है लेकिन फिर भी बिल्कुल सच्चा लगता है
वो नहीं मेरा मगर उस से मोहब्बत है तो है
मैं ने अपना हक़ माँगा था वो नाहक़ ही रूठ गया
बे-हद बेचैनी है लेकिन मक़्सद ज़ाहिर कुछ भी नहीं
सुना है ख़ुद को
प्यास
चाहत
अजब कश्मकश है अजब है कशाकश ये क्या बीच में है हमारे तुम्हारे
सुनहरी मछली
दोनों में कितना फ़र्क़ मगर दोनों का हासिल तन्हाई