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नहीं कहते किसी से हाल-ए-दिल ख़ामोश रहते हैं - द्वारका दास शोला कविता - Darsaal

नहीं कहते किसी से हाल-ए-दिल ख़ामोश रहते हैं

नहीं कहते किसी से हाल-ए-दिल ख़ामोश रहते हैं

कि अपनी दास्ताँ में तेरे अफ़्साने भी आते हैं

वो जिन पर फ़ख़्र है फ़र्ज़ानगी को नुक्ता-दानी को

तिरी महफ़िल में ऐसे चंद दीवाने भी आते हैं

अदब करता हूँ मस्जिद का वहाँ हर रोज़ जाता हूँ

कि उस की राह में दो-चार मयख़ाने भी आते हैं

हमारे मय-कदे में मय भी है ईमाँ की बातें भी

यहीं तो एक साहब वा'ज़ फ़रमाने भी आते हैं

न घबरा चाहने वालों से ये तो ऐन-ए-फ़ितरत है

कि शम्अ' नूर-अफ़शाँ हो तो परवाने भी आते हैं

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