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ख़्वाबों ख़यालों की अप्सरा - दौर आफ़रीदी कविता - Darsaal

ख़्वाबों ख़यालों की अप्सरा

सुख़न फ़रेब कोई मेहरबाँ की तरह

दयार-ए-हुस्न है दुनिया की दास्ताँ की तरह

ये मुस्कुराती हुई सुब्ह-ओ-शाम-ओ-शब की दुल्हन

दिल-ओ-नज़र के लिए सूद-ए-बे-ज़ियाँ की तरह

ये इमतिज़ाज-ए-ज़र-ए-शिर्क़-ओ-ग़र्ब का कल्चर

निगाह-ए-हुस्न लिए इश्क़ आशिक़ाँ की तरह

हरीर-ओ-रेशम-ओ-दीबा में रंग-ए-नाज़-ओ-अदा

सुकून-ए-दिल के लिए हैं क़रार-ए-जाँ की तरह

ये रंग रंग के उनवाँ लिए हसीं चेहरे

सनम-कदों में तख़य्युल के हैं बुताँ की तरह

सुडौल जिस्म कि सर्द-ए-रवाँ सर-ए-राहे

चले हैं नाज़ से हूरान-ए-आसमाँ की तरह

ये लहकी महकी फ़ज़ाएँ ये दिल-रुबा पैकर

गुलों के रंग में डूबे हुए जहाँ की तरह

ये रब्त-ओ-रक़्स-ओ-तरन्नुम हवा की लहरों में

क़दम क़दम पे अदा-हा-ए-महविशाँ की तरह

ये जगमगाती हुई रात ये दहकते कँवल

नुजूम-ओ-माह-ओ-सुरय्या-ओ-कहकशाँ की तरह

ये मेरे ख़्वाबों-ख़यालों की अप्सरा जिस में

निगाह-ए-फ़िक्र-ओ-अमल तीर की कमाँ की तरह

मगर वतन भी छुटा 'दौर' दिल की दिल में रही

ये बम्बई भी न हो ख़्वाब-ए-दीगराँ की तरह

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