मरहला
मेरी हर इक नज़र ने सज्दा किया
रौनक-ए-हुस्न-ओ-जान-ए-रू-ए-निगार
फिर भी जुम्बिश न हो सकी तुझ को
कितना मज़बूत है तिरा किरदार
क्या ख़बर तुझ को प्यार हो कि न हो
हूँ तिरी हर ख़ुशी के साथ मगर
तेरी फ़िक्र-ओ-अदा समझ न सकूँ
बर-महल जैसे बज सके न गजर
ज़ेहन की कुछ अमीक़ राहों में
ख़ुद को खोया हुआ सा पाता हूँ
जाने क्या होगा इश्क़ का हासिल
जाने क्या होगा चाहतों का फ़ुसूँ
(1231) Peoples Rate This