उस शकर-लब का मैं ख़याली हूँ
उस शकर-लब का मैं ख़याली हूँ
इस सबब शक्करीं-मक़ाली हूँ
जब सूँ तेरी भुवाँ की बैत कहा
तब सूँ मैं सानी-ए-हिलाली हूँ
दिल नहीं तुझ ख़याल सूँ ख़ाली
इस सबब सूरत-ए-ख़याली हूँ
क्यूँ नहीं मुझ शिकस्त में आवाज़
क्या मगर कासा-ए-सिफ़ाली हूँ
मुझ में इज़हार-ए-क़ाल नीं हरगिज़
बस-कि मैं आशिक़ाँ में हाली हूँ
तुझ कफ़-ए-पा की इंतिज़ारी में
फ़र्श होने कूँ नक़्श-ए-क़ाली हूँ
काँ है इस वक़्त में 'वली' 'दाऊद'
जो कहूँ मैं सुख़न का वाली हूँ
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