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तेरी अँखियाँ के तसव्वुर में सदा मस्ताना हूँ - दाऊद औरंगाबादी कविता - Darsaal

तेरी अँखियाँ के तसव्वुर में सदा मस्ताना हूँ

तेरी अँखियाँ के तसव्वुर में सदा मस्ताना हूँ

देख कर ज़ंजीर तेरे ज़ुल्फ़ की दीवाना हूँ

गाह सैर-ए-बोस्ताँ करता हूँ गाहे सैर-ए-बज़्म

गाह तेरे इश्क़ में बुलबुल हूँ गह परवाना हूँ

गाह मिस्ल-ए-बरहमन हूँ ऐ सनम ज़ुन्नार-बंद

हात में ज़ाहिद के गाहे सुब्हा-ए-सद-दाना हूँ

किया हुआ गर है दिल-ए-सद-चाक मेरा तीरा-बख़्त

हुस्न की ज़ीनत हूँ तेरे सुर्मा हूँ गर शाना हूँ

जब सूँ है उस आश्ना की आश्नाई का ख़याल

नीं रहा हूँ आप में, मैं आप सूँ बेगाना हूँ

गोश रख मेरा सुख़न सुनता है हर अहल-ए-सुख़न

जब सूँ मैं बहर-ए-सुख़न की सीप का दुर्दाना हूँ

है अज़ल सूँ जल्वा-पैरा दिल में हुब्ब-ए-मुर्तज़ा

इस सबब 'दाऊद' दाएम दुश्मन-ए-बुत-ख़ाना हूँ

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