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दिल कूँ दिलदार के नियाज़ करे - दाऊद औरंगाबादी कविता - Darsaal

दिल कूँ दिलदार के नियाज़ करे

दिल कूँ दिलदार के नियाज़ करे

तन कूँ आराम-ओ-सुख सूँ बाज़ करे

हुए तब राग-ए-इश्क़ सूँ आगाह

रग-ए-जाँ जब कि तार-ए-साज़ करे

इस सुख़न का अजब है अफ़्साना

जो सुने उस कूँ अहल-ए-राज़ करे

सैद करने के तईं कबूतर-ए-इश्क़

ताइर-ए-दिल मिसाल-ए-बाज़ करे

हर्फ़-ए-हक़ पर अगर है दिल साबित

मिस्ल-ए-मंसूर सर नियाज़ करे

आशिक़ाँ कूँ नियाज़ है लाज़िम

नाज़नीं गर अदा सूँ नाज़ करे

शोला-ए-इश्क़ उस पे हुए रौशन

शम्अ साँ दिल कूँ जो गुदाज़ करे

पहुँचने इल्म कूँ हक़ीक़त के

सैर अज़ नुस्ख़ा-ए-मजाज़ करे

कोई उस सर्व-क़द कूँ जा बोलो

दर्स दिखला के सरफ़राज़ करे

खोल कर ज़ुल्फ़-ए-अम्बरीं यक-बार

रिश्ता-ए-शौक़ कूँ दराज़ करे

जो पढ़े तेरे शेर कूँ 'दाऊद'

आख़िरश दिल कूँ इश्क़-बाज़ करे

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