इश्क़ ही इश्क़ हो आशिक़ हो न माशूक़ जहाँ
इश्क़ ही इश्क़ हो आशिक़ हो न माशूक़ जहाँ
ऐसी इक दरगह-ए-तौहीद-मआ'ब और भी है
होश से काट ये दिन ज़िंदा-दिली से रख काम
शेब के बा'द मिरी जान-ए-शबाब और भी है
यार मय-ख़ाने अगर कर गए ख़ाली ग़म क्या
अब भी अब्र आता है और ख़ुम में शराब और भी है
घर किया 'ग़ालिब'-ओ-'मोमिन' ने जहाँ आँखों में
इसी बस्ती में कोई ख़ाना-ख़राब और भी है
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