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ये किस ने कह दिया आख़िर कि छुप-छुपा के पियो - दर्शन सिंह कविता - Darsaal

ये किस ने कह दिया आख़िर कि छुप-छुपा के पियो

ये किस ने कह दिया आख़िर कि छुप-छुपा के पियो

ये मय है मय उसे औरों को भी पिला के पियो

ग़म-ए-जहाँ को ग़म-ए-ज़ीस्त को भुला के पियो

हसीन गीत मोहब्बत के गुनगुना के पियो

छुटे न दामन-ए-ताअ'त भी वक़्त-ए-मय-नोशी

पियो तो सज्दा-ए-उल्फ़त में सर झुका के पियो

बुझे बुझे से हों अरमाँ तो क्या फ़रोग़-ए-नशात

जो सो गए हैं सितारे उन्हें जगा के पियो

ग़म-ए-हयात का दरमाँ हैं इश्क़ के आँसू

अँधेरी रात है यारो दिए जला के पियो

नसीब होगी बहर-कैफ़ मर्ज़ी-ए-साक़ी

मिले जो ज़हर भी यारो तो मुस्कुरा के पियो

मिरे ख़ुलूस पे शैख़-ए-हरम भी कह उट्ठा

जो पी रहे हो तो 'दर्शन' हरम में आ के पियो

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