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तुझे क्या ख़बर मिरे हम-सफ़र मिरा मरहला कोई और है - दर्शन सिंह कविता - Darsaal

तुझे क्या ख़बर मिरे हम-सफ़र मिरा मरहला कोई और है

तुझे क्या ख़बर मिरे हम-सफ़र मिरा मरहला कोई और है

मुझे मंज़िलों से गुरेज़ है मेरा रास्ता कोई और है

मेरी चाहतों को न पूछिए जो मिला तलब से सिवा मिला

मिरी दास्ताँ ही अजीब है मिरा मसअला कोई और है

ये हवस के बंदे हैं नासेहा न समझ सके मिरा मुद्दआ'

मुझे प्यार है किसी और से मिरा दिल-रुबा कोई और है

मिरा ज़ौक़-ए-सज्दा है ज़ाहिरी कि है कश्मकश मिरी ज़िंदगी

ये गुमान दिल में रहा सदा मिरा मुद्दआ' कोई और है

वो रहीम है वो करीम है वो नहीं कि ज़ुल्म करे सदा

है यक़ीं ज़माने को देख कर कि यहाँ ख़ुदा कोई और है

मैं चला कहाँ से ख़बर नहीं कि सफ़र में है मिरी ज़िंदगी

मिरी इब्तिदा कहीं और है मिरी इंतिहा कोई और है

मिरा नाम 'दर्शन'-ए-ख़स्ता-तन मिरे दिल में कोई है ज़ौ-फ़गन

मैं हूँ गुम किसी की तलाश में मुझे ढूँढता कोई और है

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