Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_eba103aab9b593e1d5039ef83ba2d0b0, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
चश्म-ए-बीना हो तो क़ैद-ए-हरम-ओ-तूर नहीं - दर्शन सिंह कविता - Darsaal

चश्म-ए-बीना हो तो क़ैद-ए-हरम-ओ-तूर नहीं

चश्म-ए-बीना हो तो क़ैद-ए-हरम-ओ-तूर नहीं

देखने वाली निगाहों से वो मस्तूर नहीं

कौन सा घर है जवाँ जल्वों से पुर-नूर नहीं

इक मिरे दिल की ही दुनिया है जो मा'मूर नहीं

अपनी हिम्मत ही से पहुँचूँगा सर-ए-मंज़िल-ए-शौक़

लूँ सहारा मैं किसी का मुझे मंज़ूर नहीं

ग़म-ए-जानाँ को भुला दूँ न करूँ दोस्त को याद

इतना मैं ऐ ग़म-ए-दौराँ अभी मजबूर नहीं

ये मोहब्बत की है क़ीमत ये मोहब्बत का सिला

कि हमारे ही लिए इश्क़ का दस्तूर नहीं

दोनों आलम को डुबो दे जो मय-ओ-मीना में

चश्म-ए-साक़ी के सिवा और का मक़्दूर नहीं

मुस्कुरा दो तो मिरा ग़ुंचा-दिल खिल जाए

दिल कभी खिल न सके ऐसा भी रंजूर नहीं

तुम नहीं पास मगर साथ है यादों का हुजूम

मैं अकेला नहीं बेकस नहीं महजूर नहीं

आज कुछ शाम से तारीक है दिल की महफ़िल

तुम नहीं हो तो वो रौनक़ नहीं वो नूर नहीं

मुझ में हिम्मत है कि मैं राज़ को इफ़्शा न करूँ

ये मिरा ज़र्फ़ है ये शेवा-ए-मंसूर नहीं

कर सकेगा न जुदा फ़ासला-ए-वक़्त-ओ-मकाँ

दूर नज़रों से सही दिल से मगर दूर नहीं

मेरी तक़दीर में 'दर्शन' हैं किसी के जल्वे

शुक्र सद शुक्र कि दुनिया मिरी बे-नूर नहीं

(1108) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Chashm-e-bina Ho To Qaid-e-haram-o-tur Nahin In Hindi By Famous Poet Darshan Singh. Chashm-e-bina Ho To Qaid-e-haram-o-tur Nahin is written by Darshan Singh. Complete Poem Chashm-e-bina Ho To Qaid-e-haram-o-tur Nahin in Hindi by Darshan Singh. Download free Chashm-e-bina Ho To Qaid-e-haram-o-tur Nahin Poem for Youth in PDF. Chashm-e-bina Ho To Qaid-e-haram-o-tur Nahin is a Poem on Inspiration for young students. Share Chashm-e-bina Ho To Qaid-e-haram-o-tur Nahin with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.