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कोई सिवा-ए-बदन है न है वरा-ए-बदन - दानियाल तरीर कविता - Darsaal

कोई सिवा-ए-बदन है न है वरा-ए-बदन

कोई सिवा-ए-बदन है न है वरा-ए-बदन

बदन में गूँज रही है अभी सदा-ए-बदन

अजब है शहर मगर शहर से भी लोग अजब

उधार माँग रहे हैं बदन बरा-ए-बदन

जहाँ ठिठुरती तमन्ना को आग तक न मिले

वहाँ पे कौन ठहरता है ऐ सरा-ए-बदन

कहीं चमकती हुई रेत भी दिखाई न दी

कहाँ गया वो समुंदर सराब खाए बदन

चराग़ बन के चमकते हैं रोज़ शाम ढले

हमारे पहलू में सोए हुए पराए बदन

हर एक राह में बिखरे पड़े हैं बर्ग-ए-नफ़स

यहाँ चली है बहुत दिन तलक हवा-ए-बदन

वो अपनी क़ौस-ए-क़ुज़ह ले गया तो क्या होगा

'तरीर' ग़ौर-तलब है तिरी फ़ज़ा-ए-बदन

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Koi Siwa-e-badan Hai Na Hai Wara-e-badan In Hindi By Famous Poet Daniyal Tareer. Koi Siwa-e-badan Hai Na Hai Wara-e-badan is written by Daniyal Tareer. Complete Poem Koi Siwa-e-badan Hai Na Hai Wara-e-badan in Hindi by Daniyal Tareer. Download free Koi Siwa-e-badan Hai Na Hai Wara-e-badan Poem for Youth in PDF. Koi Siwa-e-badan Hai Na Hai Wara-e-badan is a Poem on Inspiration for young students. Share Koi Siwa-e-badan Hai Na Hai Wara-e-badan with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.