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कुछ अपने दौर की भी कहानी लिखा करो - दानिश फ़राही कविता - Darsaal

कुछ अपने दौर की भी कहानी लिखा करो

कुछ अपने दौर की भी कहानी लिखा करो

पत्थर को मोम ख़ून को पानी लिखा करो

जिद्दत की रौ में लोग कहाँ से कहाँ गए

तुम से बने तो बात पुरानी लिखा करो

वो अहद है कि शोला-फ़िशाँ बिजलियों को भी

ग़ज़लों में रंग-ओ-नूर की रानी लिखा करो

लफ़्ज़ों को अपने अस्ल मआ'नी से आर है

अब दोस्तों को दुश्मन-ए-जानी लिखा करो

है बे-हिसों की भीड़ न होगा कोई असर

अख़बार में हज़ार गिरानी लिखा करो

लिखने के वास्ते कोई उनवान चाहिए

फ़रियाद-ओ-आह-ओ-अश्क-फ़िशानी लिखा करो

शोहरत के ख़्वास्तगारो मिरा मशवरा है ये

'ग़ालिब' का अपने आप को सानी लिखा करो

'दानिश' ज़ह-ए-नसीब मिले ज़ख़्म-ए-लाला-रंग

हर ज़ख़्म-ए-दिल को उन की निशानी लिखा करो

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