अपने दुश्मन को भी ख़ुद बढ़ के लगा लो सीने
बात बिगड़ी हुई इस तरह बना ली जाए
Javed Akhtar
Habib Jalib
Allama Iqbal
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
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तेरे फ़िराक़ ने की ज़िंदगी अता मुझ को
ज़र्रे ज़र्रे में महक प्यार की डाली जाए
क्या ख़बर थी मुन्हरिफ़ अहल-ए-जहाँ हो जाएँगे
मुस्कुरा कर उन का मिलना और बिछड़ना रूठ कर
आख़िरी वक़्त तलक साथ अंधेरों ने दिया
वाइज़ तू अगर उन के कूचे से गुज़र जाए
हो के मजबूर ये बच्चों को सबक़ देना है
रूदाद-ए-शब-ए-ग़म यूँ डरता हूँ सुनाने से
अगर मैं उन की निगाहों से गिर गया होता
गर तरन्नुम पर ही 'दानिश' मुनहसिर है शाइरी