ज़िंदगी कर गई तूफ़ाँ के हवाले मुझ को
ज़िंदगी कर गई तूफ़ाँ के हवाले मुझ को
ऐ अजल कशमकश-ए-ग़म से छुड़ा ले मुझ को
कुछ तो ले काम तग़ाफ़ुल से वफ़ा के पैकर
ये तिरा प्यार कहीं मार न डाले मुझ को
वाह री क़िस्मत कि कहाँ मंज़िल-ए-मक़्सूद मिली
जब मज़ा देने लगे पाँव के छाले मुझ को
आख़िरी वक़्त तलक साथ अंधेरों ने दिया
रास आते नहीं दुनिया के उजाले मुझ को
कोई भी मोहसिन ओ रहबर ही नहीं है मेरा
यूँ तो 'दानिश' हैं बहुत चाहने वाले मुझ को
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