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अगर मैं उन की निगाहों से गिर गया होता - दानिश अलीगढ़ी कविता - Darsaal

अगर मैं उन की निगाहों से गिर गया होता

अगर मैं उन की निगाहों से गिर गया होता

तो आज अपनी नज़र से उतर गया होता

तेरे फ़िराक़ ने की ज़िंदगी अता मुझ को

तेरा विसाल जो मिलता तो मर गया होता

जो तुम ने प्यार से आवाज़ मुझ को दी होती

रह-ए-हयात से हँस कर गुज़र गया होता

जो झूट-मूट ही तुम मुझ को अपना कह देते

तो मेरे प्यार का हर क़र्ज़ उतर गया होता

जो इक निगाह-ए-करम उन की पड़ती ऐ 'दानिश'

तो मेरा बिगड़ा मुक़द्दर सँवर गया होता

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