Sad Poetry of Dagh Dehlvi (page 1)
नाम | दाग़ देहलवी |
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अंग्रेज़ी नाम | Dagh Dehlvi |
जन्म की तारीख | 1831 |
मौत की तिथि | 1905 |
जन्म स्थान | Delhi |
यूँ मेरे साथ दफ़्न दिल-ए-बे-क़रार हो
वो ज़माना भी तुम्हें याद है तुम कहते थे
वो दिन गए कि 'दाग़' थी हर दम बुतों की याद
वाइज़ बड़ा मज़ा हो अगर यूँ अज़ाब हो
वफ़ा करेंगे निबाहेंगे बात मानेंगे
वादा झूटा कर लिया चलिए तसल्ली हो गई
उधर शर्म हाइल इधर ख़ौफ़ माने
तदबीर से क़िस्मत की बुराई नहीं जाती
शिरकत-ए-ग़म भी नहीं चाहती ग़ैरत मेरी
रहा न दिल में वो बेदर्द और दर्द रहा
न रोना है तरीक़े का न हँसना है सलीक़े का
मुझे याद करने से ये मुद्दआ था
मुअज़्ज़िन ने शब-ए-वस्ल अज़ाँ पिछले पहर
मेरे क़ाबू में न पहरों दिल-ए-नाशाद आया
मर्ग-ए-दुश्मन का ज़ियादा तुम से है मुझ को मलाल
लीजिए सुनिए अब अफ़्साना-ए-फ़ुर्क़त मुझ से
लज़्ज़त-ए-इश्क़ इलाही मिट जाए
जो गुज़रते हैं 'दाग़' पर सदमे
हो सके क्या अपनी वहशत का इलाज
ग़ज़ब किया तिरे वअ'दे पे ए'तिबार किया
फ़लक देता है जिन को ऐश उन को ग़म भी होते हैं
दुनिया में जानता हूँ कि जन्नत मुझे मिली
दिल दे तो इस मिज़ाज का परवरदिगार दे
दी शब-ए-वस्ल मोअज़्ज़िन ने अज़ाँ पिछली रात
चुप-चाप सुनती रहती है पहरों शब-ए-फ़िराक़
भवें तनती हैं ख़ंजर हाथ में है तन के बैठे हैं
बड़ा मज़ा हो जो महशर में हम करें शिकवा
आती है बात बात मुझे बार बार याद
आप का ए'तिबार कौन करे
ये बात बात में क्या नाज़ुकी निकलती है