उस के दर तक किसे रसाई है
उस के दर तक किसे रसाई है
वो ही जाएगा जिस की आई है
बात इक दिल में मेरे आई है
गर कहूँ तो अभी लड़ाई है
दूसरी जान है तिरी उल्फ़त
एक खोई है एक पाई है
भर दिया ज़ख़्म में नमक उस ने
ये दुआ-गो की मुँह-भराई है
सच है बे-ऐब है ख़ुदा की ज़ात
तुझ में क्या जाने क्या बुराई है
ऐ लब-ए-यार तुझ को मेरी क़सम
कभी सच्ची क़सम भी खाई है
उस के दर तक पहुँच गया क़ासिद
आगे तक़दीर की रसाई है
क़त्ल करती है गुफ़्तुगू उन की
बात में बात की सफ़ाई है
'दाग़' अब वस्ल का विसाल हुआ
यार ज़िंदा ग़म-ए-जुदाई है
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