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उस के दर तक किसे रसाई है - दाग़ देहलवी कविता - Darsaal

उस के दर तक किसे रसाई है

उस के दर तक किसे रसाई है

वो ही जाएगा जिस की आई है

बात इक दिल में मेरे आई है

गर कहूँ तो अभी लड़ाई है

दूसरी जान है तिरी उल्फ़त

एक खोई है एक पाई है

भर दिया ज़ख़्म में नमक उस ने

ये दुआ-गो की मुँह-भराई है

सच है बे-ऐब है ख़ुदा की ज़ात

तुझ में क्या जाने क्या बुराई है

ऐ लब-ए-यार तुझ को मेरी क़सम

कभी सच्ची क़सम भी खाई है

उस के दर तक पहुँच गया क़ासिद

आगे तक़दीर की रसाई है

क़त्ल करती है गुफ़्तुगू उन की

बात में बात की सफ़ाई है

'दाग़' अब वस्ल का विसाल हुआ

यार ज़िंदा ग़म-ए-जुदाई है

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