शब-ए-वस्ल भी लब पे आए गए हैं
शब-ए-वस्ल भी लब पे आए गए हैं
ये नाले बहुत मुँह लगाए गए हैं
ख़ुदा जाने हम किस के पहलू में होंगे
अदम को सब अपने पराए गए हैं
वही राह मिलती है चल फिर के हम को
जहाँ ख़ाक में दिल मिलाए गए हैं
मिरे दिल की क्यूँकर न हो पाएमाली
बहुत इस में अरमान आए गए हैं
गिले शिकवे झूटे भी थे किस मज़े के
हम इल्ज़ाम दानिस्ता खाए गए हैं
निगह को जिगर ज़ुल्फ़ को दिल दिया है
ये दोनों ठिकाने लगाए गए हैं
रहे चुप न हम भी दम-ए-अर्ज़-ए-मतलब
वो इक इक की सौ सौ सुनाए गए हैं
फ़रिश्ते भी देखें तो खुल जाएँ आँखें
बशर को वो जल्वे दिखाए गए हैं
चलो हज़रत-ए-'दाग़' की सैर देखें
वहाँ आज भी वो बुलाए गए हैं
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