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ना-रवा कहिए ना-सज़ा कहिए - दाग़ देहलवी कविता - Darsaal

ना-रवा कहिए ना-सज़ा कहिए

ना-रवा कहिए ना-सज़ा कहिए

कहिए कहिए मुझे बुरा कहिए

तुझ को बद-अहद ओ बेवफ़ा कहिए

ऐसे झूटे को और क्या कहिए

दर्द दिल का न कहिए या कहिए

जब वो पूछे मिज़ाज क्या कहिए

फिर न रुकिए जो मुद्दआ कहिए

एक के बाद दूसरा कहिए

आप अब मेरा मुँह न खुलवाएँ

ये न कहिए कि मुद्दआ कहिए

वो मुझे क़त्ल कर के कहते हैं

मानता ही न था ये क्या कहिए

दिल में रखने की बात है ग़म-ए-इश्क़

इस को हरगिज़ न बरमला कहिए

तुझ को अच्छा कहा है किस किस ने

कहने वालों को और क्या कहिए

वो भी सुन लेंगे ये कभी न कभी

हाल-ए-दिल सब से जा-ब-जा कहिए

मुझ को कहिए बुरा न ग़ैर के साथ

जो हो कहना जुदा जुदा कहिए

इंतिहा इश्क़ की ख़ुदा जाने

दम-ए-आख़िर को इब्तिदा कहिए

मेरे मतलब से क्या ग़रज़ मतलब

आप अपना तो मुद्दआ कहिए

ऐसी कश्ती का डूबना अच्छा

कि जो दुश्मन को नाख़ुदा कहिए

सब्र फ़ुर्क़त में आ ही जाता है

पर उसे देर-आश्ना कहिए

आ गई आप को मसीहाई

मरने वालों को मरहबा कहिए

आप का ख़ैर-ख़्वाह मेरे सिवा

है कोई और दूसरा कहिए

हाथ रख कर वो अपने कानों पर

मुझ से कहते हैं माजरा कहिए

होश जाते रहे रक़ीबों के

'दाग़' को और बा-वफ़ा कहिए

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