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दिल परेशान हुआ जाता है - दाग़ देहलवी कविता - Darsaal

दिल परेशान हुआ जाता है

दिल परेशान हुआ जाता है

और सामान हुआ जाता है

ख़िदमत-ए-पीर-ए-मुग़ाँ कर ज़ाहिद

तू अब इंसान हुआ जाता है

मौत से पहले मुझे क़त्ल करो

उस का एहसान हुआ जाता है

लज़्ज़त-ए-इश्क़ इलाही मिट जाए

दर्द अरमान हुआ जाता है

दम ज़रा लो कि मिरा दम तुम पर

अभी क़ुर्बान हुआ जाता है

गिर्या क्या ज़ब्त करूँ ऐ नासेह

अश्क पैमान हुआ जाता है

बेवफ़ाई से भी रफ़्ता रफ़्ता

वो मिरी जान हुआ जाता है

अर्सा-ए-हश्र में वो आ पहुँचे

साफ़ मैदान हुआ जाता है

मदद ऐ हिम्मत-ए-दुश्वार-पसंद

काम आसान हुआ जाता है

छाई जाती है ये वहशत कैसी

घर बयाबान हुआ जाता है

शिकवा सुन आँख मिला कर ज़ालिम

क्यूँ पशीमान हुआ जाता है

आतिश-ए-शौक़ बुझी जाती है

ख़ाक अरमान हुआ जाता है

उज़्र जाने में न कर ऐ क़ासिद

तू भी नादान हुआ जाता है

मुज़्तरिब क्यूँ न हों अरमाँ दिल में

क़ैद मेहमान हुआ जाता है

'दाग़' ख़ामोश न लग जाए नज़र

शेर दीवान हुआ जाता है

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