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दिल को क्या हो गया ख़ुदा जाने - दाग़ देहलवी कविता - Darsaal

दिल को क्या हो गया ख़ुदा जाने

दिल को क्या हो गया ख़ुदा जाने

क्यूँ है ऐसा उदास क्या जाने

अपने ग़म में भी उस को सरफ़ा है

न खिला जाने वो न खा जाने

इस तजाहुल का क्या ठिकाना है

जान कर जो न मुद्दआ' जाने

कह दिया मैं ने राज़-ए-दिल अपना

उस को तुम जानो या ख़ुदा जाने

क्या ग़रज़ क्यूँ इधर तवज्जोह हो

हाल-ए-दिल आप की बला जाने

जानते जानते ही जानेगा

मुझ में क्या है अभी वो क्या जाने

क्या हम उस बद-गुमाँ से बात करें

जो सताइश को भी गिला जाने

तुम न पाओगे सादा-दिल मुझ सा

जो तग़ाफ़ुल को भी हया जाने

है अबस जुर्म-ए-इश्क़ पर इल्ज़ाम

जब ख़ता-वार भी ख़ता जाने

नहीं कोताह दामन-ए-उम्मीद

आगे अब दस्त-ए-ना-रसा जाने

जो हो अच्छा हज़ार अच्छों का

वाइ'ज़ उस बुत को तू बुरा जाने

की मिरी क़द्र मिस्ल-ए-शाह-ए-दकन

किसी नव्वाब ने न राजा ने

उस से उट्ठेगी क्या मुसीबत-ए-इश्क़

इब्तिदा को जो इंतिहा जाने

'दाग़' से कह दो अब न घबराओ

काम अपना बता हुआ जाने

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