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दिल चुरा कर नज़र चुराई है - दाग़ देहलवी कविता - Darsaal

दिल चुरा कर नज़र चुराई है

दिल चुरा कर नज़र चुराई है

लुट गए लुट गए दुहाई है

एक दिन मिल के फिर नहीं मिलते

किस क़यामत की ये जुदाई है

ऐ असर कर न इंतिज़ार-ए-दुआ

माँगना सख़्त बे-हयाई है

मैं यहाँ हूँ वहाँ है दिल मेरा

ना-रसाई अजब रसाई है

इस तरह अहल-ए-नाज़ नाज़ करें

बंदगी है कि ये ख़ुदाई है

पानी पी पी के तौबा करता हूँ

पारसाई सी पारसाई है

वा'दा करने का इख़्तियार रहा

बात करने में क्या बुराई है

कब निकलता है अब जिगर से तीर

ये भी क्या तेरी आश्नाई है

'दाग़' उन से दिमाग़ करते हैं

नहीं मालूम क्या समाई है

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