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आप का ए'तिबार कौन करे - दाग़ देहलवी कविता - Darsaal

आप का ए'तिबार कौन करे

आप का ए'तिबार कौन करे

रोज़ का इंतिज़ार कौन करे

ज़िक्र-ए-मेहर-ओ-वफ़ा तो हम करते

पर तुम्हें शर्मसार कौन करे

हो जो उस चश्म-ए-मस्त से बे-ख़ुद

फिर उसे होशियार कौन करे

तुम तो हो जान इक ज़माने की

जान तुम पर निसार कौन करे

आफ़त-ए-रोज़गार जब तुम हो

शिकवा-ए-रोज़गार कौन करे

अपनी तस्बीह रहने दे ज़ाहिद

दाना दाना शुमार कौन करे

हिज्र में ज़हर खा के मर जाऊँ

मौत का इंतिज़ार कौन करे

आँख है तर्क-ए-ज़ुल्फ़ है सय्याद

देखें दिल का शिकार कौन करे

वअ'दा करते नहीं ये कहते हैं

तुझ को उम्मीद-वार कौन करे

'दाग़' की शक्ल देख कर बोले

ऐसी सूरत को प्यार कौन करे

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