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इंसान नहीं वो जो गुनहगार नहीं हैं - डी. राज कँवल कविता - Darsaal

इंसान नहीं वो जो गुनहगार नहीं हैं

इंसान नहीं वो जो गुनहगार नहीं हैं

वो कौन सा गुलशन है जहाँ ख़ार नहीं हैं

जो लोग मोहब्बत में गिरफ़्तार नहीं हैं

वो लोग हक़ीक़त के परस्तार नहीं हैं

दुनिया में मयस्सर है अभी जिंस-ए-मोहब्बत

सद हैफ़ कि पहले से ख़रीदार नहीं हैं

टूटे हैं न टूटेंगे कभी बोझ से ग़म के

नाज़ुक हैं मगर रेत की दीवार नहीं हैं

दिल शौक़ से दें आप मगर सोच समझ कर

दुनिया में सभी लोग वफ़ादार नहीं हैं

जब अज़्म-ए-सफ़र कर ही लिया आओ चलें हम

तूफ़ान के थमने के तो आसार नहीं हैं

चढ़ता है 'कँवल' कौन सलीबों पे ख़ुशी से

सब लोग मसीहा के तो अवतार नहीं हैं

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