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दुनिया में दिल लगा के बहुत सोचते रहे - डी. राज कँवल कविता - Darsaal

दुनिया में दिल लगा के बहुत सोचते रहे

दुनिया में दिल लगा के बहुत सोचते रहे

काँटों को गुदगुदा के बहुत सोचते रहे

कल सुब्ह एक शाख़ ये दो अध-खिला गुलाब

थोड़ा सा मुस्कुरा के बहुत सोचते रहे

क्या जाने चाँदनी ने सितारों से क्या कहा

शब-भर वो सर झुका के बहुत सोचते रहे

टूटा कहीं जो शाख़ से ग़ुंचा तो हम वहीं

पहलू में दिल दबा के बहुत सोचते रहे

क्या जाने किस लिए वो नज़र के सवाल पर

हम से नज़र बचा के बहुत सोचते रहे

इतना तो याद है कि मोहब्बत के ज़िक्र पर

होंटों को वो दबा के बहुत सोचते रहे

हाथों से गिर के चूर हुआ जाम जब 'कँवल'

टुकड़े उठा उठा के बहुत सोचते रहे

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