Couplets Poetry (page 616)
बंदिशें इश्क़ में दुनिया से निराली देखें
आले रज़ा रज़ा
ये क्या ग़ज़ब है जो कल तक सितम-रसीदा थे
आल-ए-अहमद सूरूर
वो तबस्सुम है कि 'ग़ालिब' की तरह-दार ग़ज़ल
आल-ए-अहमद सूरूर
तुम्हारी मस्लहत अच्छी कि अपना ये जुनूँ बेहतर
आल-ए-अहमद सूरूर
तमाम उम्र कटी उस की जुस्तुजू करते
आल-ए-अहमद सूरूर
साहिल के सुकूँ से किसे इंकार है लेकिन
आल-ए-अहमद सूरूर
मय-कशी के भी कुछ आदाब बरतना सीखो
आल-ए-अहमद सूरूर
लोग माँगे के उजाले से हैं ऐसे मरऊब
आल-ए-अहमद सूरूर
कुछ तो है वैसे ही रंगीं लब ओ रुख़्सार की बात
आल-ए-अहमद सूरूर
जो तिरे दर से उठा फिर वो कहीं का न रहा
आल-ए-अहमद सूरूर
जहाँ में हो गई ना-हक़ तिरी जफ़ा बदनाम
आल-ए-अहमद सूरूर
हुस्न काफ़िर था अदा क़ातिल थी बातें सेहर थीं
आल-ए-अहमद सूरूर
हम तो कहते थे ज़माना ही नहीं जौहर-शनास
आल-ए-अहमद सूरूर
हम जिस के हो गए वो हमारा न हो सका
आल-ए-अहमद सूरूर
हस्ती के भयानक नज़्ज़ारे साथ अपने चले हैं दुनिया से
आल-ए-अहमद सूरूर
बस्तियाँ कुछ हुईं वीरान तो मातम कैसा
आल-ए-अहमद सूरूर
अभी आते नहीं उस रिंद को आदाब-ए-मय-ख़ाना
आल-ए-अहमद सूरूर
अब धनक के रंग भी उन को भले लगते नहीं
आल-ए-अहमद सूरूर
आती है धार उन के करम से शुऊर में
आल-ए-अहमद सूरूर
आज पी कर भी वही तिश्ना-लबी है साक़ी
आल-ए-अहमद सूरूर
आज पी कर भी वही तिश्ना-लबी है साक़ी
आल-ए-अहमद सूरूर
ज़ाहिदो कअ'बे की जानिब खींचते हो क्यूँ मुझे
आग़ा अकबराबादी
वादा-ए-बादा-ए-अतहर का भरोसा कब तक
आग़ा अकबराबादी
तवाफ़-ए-काबा को क्या जाएँ हज नहीं वाजिब
आग़ा अकबराबादी
ता-मर्ग मुझ से तर्क न होगी कभी नमाज़
आग़ा अकबराबादी
शिकायत मुझ को दोनों से है नासेह हो कि वाइज़ हो
आग़ा अकबराबादी
शराब पीते हैं तो जागते हैं सारी रात
आग़ा अकबराबादी
सनम-परस्ती करूँ तर्क क्यूँकर ऐ वाइ'ज़
आग़ा अकबराबादी
रिंद-मशरब हैं किसी से हमें कुछ काम नहीं
आग़ा अकबराबादी
रक़ीब क़त्ल हुआ उस की तेग़-ए-अबरू से
आग़ा अकबराबादी