Couplets Poetry (page 615)
क्यूँ खुल गए लोगों पे मिरी ज़ात के असरार
आनिस मुईन
कब बार-ए-तबस्सुम मिरे होंटों से उठेगा
आनिस मुईन
हज़ारों क़ुमक़ुमों से जगमगाता है ये घर लेकिन
आनिस मुईन
हमारी मुस्कुराहट पर न जाना
आनिस मुईन
हैरत से जो यूँ मेरी तरफ़ देख रहे हो
आनिस मुईन
गूँजता है बदन में सन्नाटा
आनिस मुईन
गया था माँगने ख़ुशबू मैं फूल से लेकिन
आनिस मुईन
गहरी सोचें लम्बे दिन और छोटी रातें
आनिस मुईन
गए ज़माने की चाप जिन को समझ रहे हो
आनिस मुईन
इक डूबती धड़कन की सदा लोग न सुन लें
आनिस मुईन
दरकार तहफ़्फ़ुज़ है प साँस भी लेना है
आनिस मुईन
बिखर के फूल फ़ज़ाओं में बास छोड़ गया
आनिस मुईन
बदन की अंधी गली तो जा-ए-अमान ठहरी
आनिस मुईन
अंजाम को पहुँचूँगा मैं अंजाम से पहले
आनिस मुईन
अंदर की दुनिया से रब्त बढ़ाओ 'आनिस'
आनिस मुईन
अजब अंदाज़ से ये घर गिरा है
आनिस मुईन
आख़िर को रूह तोड़ ही देगी हिसार-ए-जिस्म
आनिस मुईन
आज ज़रा सी देर को अपने अंदर झाँक कर देखा था
आनिस मुईन
ज़रा सी चाय गिरी और दाग़ दाग़ वरक़
आमिर सुहैल
मैं क्या करूँगा रह के इस जहान में
आमिर सुहैल
ये सोचना ग़लत है कि तुम पर नज़र नहीं
आलोक श्रीवास्तव
यही तो एक तमन्ना है इस मुसाफ़िर की
आलोक श्रीवास्तव
आ ही गए हैं ख़्वाब तो फिर जाएँगे कहाँ
आलोक श्रीवास्तव
उस बेवफ़ा से कर के वफ़ा मर-मिटा 'रज़ा'
आले रज़ा रज़ा
उन के सितम भी कह नहीं सकते किसी से हम
आले रज़ा रज़ा
तुम 'रज़ा' बन के मुसलमान जो काफ़िर ही रहे
आले रज़ा रज़ा
समझ तो ये कि न समझे ख़ुद अपना रंग-ए-जुनूँ
आले रज़ा रज़ा
क़िस्मत में ख़ुशी जितनी थी हुई और ग़म भी है जितना होना है
आले रज़ा रज़ा
हम ने बे-इंतिहा वफ़ा कर के
आले रज़ा रज़ा
दर्द-ए-दिल और जान-लेवा पुर्सिशें
आले रज़ा रज़ा