Couplets Poetry (page 612)
ज़बाँ पे शिकवा-ए-बे-मेहरी-ए-ख़ुदा क्यूँ है?
अातिश बहावलपुरी
ये सारी बातें हैं दर-हक़ीक़त हमारे अख़्लाक़ के मुनाफ़ी
अातिश बहावलपुरी
ये मय-ख़ाना है मय-ख़ाना तक़द्दुस उस का लाज़िम है
अातिश बहावलपुरी
उमीद उन से वफ़ा की तो ख़ैर क्या कीजे
अातिश बहावलपुरी
तुम्हें तो अपनी जफ़ाओं की ख़ूब दाद मिली
अातिश बहावलपुरी
मुख़ालिफ़ों को भी अपना बना लिया तू ने
अातिश बहावलपुरी
मुझे भी इक सितमगर के करम से
अातिश बहावलपुरी
मस्लहत का यही तक़ाज़ा है
अातिश बहावलपुरी
ख़ूगर-ए-लज़्ज़त-ए-आज़ार था इतना 'आतिश'
अातिश बहावलपुरी
जो चाहते हो बदलना मिज़ाज-ए-तूफ़ाँ को
अातिश बहावलपुरी
गिला मुझ से था या मेरी वफ़ा से
अातिश बहावलपुरी
ग़म-ओ-अलम भी हैं तुम से ख़ुशी भी तुम से है
अातिश बहावलपुरी
दर-हक़ीक़त इत्तिसाल-ए-जिस्म-ओ-जाँ है ज़िंदगी
अातिश बहावलपुरी
चारासाज़ों की चारा-साज़ी से
अातिश बहावलपुरी
अपने चेहरे से जो ज़ुल्फ़ों को हटाया उस ने
अातिश बहावलपुरी
आप की हस्ती में ही मस्तूर हो जाता हूँ मैं
अातिश बहावलपुरी
रहज़नों के हाथ सारा इंतिज़ाम आया तो क्या
आतिफ़ वहीद 'यासिर'
मिरी राख में थीं कहीं कहीं मेरे एक ख़्वाब की किर्चियाँ
आतिफ़ वहीद 'यासिर'
किस के बदन की नर्मियाँ हाथों को गुदगुदा गईं
आतिफ़ वहीद 'यासिर'
इश्क़ जैसे कहीं छूने से भी लग जाता हो
आतिफ़ वहीद 'यासिर'
बर्क़ बाराँ तीरगी और ज़लज़ला
आसिम शहनवाज़ शिबली
सब्र पर दिल को तो आमादा किया है लेकिन
आसी उल्दनी
मुरत्तब कर गया इक इश्क़ का क़ानून दुनिया में
आसी उल्दनी
कहते हैं कि उम्मीद पे जीता है ज़माना
आसी उल्दनी
जहाँ अपना क़िस्सा सुनाना पड़ा
आसी उल्दनी
इश्क़ पाबंद-ए-वफ़ा है न कि पाबंद-ए-रुसूम
आसी उल्दनी
बेताब सा फिरता है कई रोज़ से 'आसी'
आसी उल्दनी
अपनी हालत का ख़ुद एहसास नहीं है मुझ को
आसी उल्दनी
मैं आख़िर आदमी हूँ कोई लग़्ज़िश हो ही जाती है
आसी करनाली
वो फिर वादा मिलने का करते हैं यानी
आसी ग़ाज़ीपुरी