Couplets Poetry (page 609)
बाम-ओ-दर की रौशनी फिर क्यूँ बुलाती है मुझे
अब्दुल अहद साज़
अब आ के क़लम के पहलू में सो जाती हैं बे-कैफ़ी से
अब्दुल अहद साज़
आई हवा न रास जो सायों के शहर की
अब्दुल अहद साज़
ये ज़मीं तो है किसी काग़ज़ी कश्ती जैसी
अब्बास ताबिश
ये तो अब इश्क़ में जी लगने लगा है कुछ कुछ
अब्बास ताबिश
ये मोहब्बत की कहानी नहीं मरती लेकिन
अब्बास ताबिश
ये मौज मौज बनी किस की शक्ल सी 'ताबिश'
अब्बास ताबिश
वर्ना कोई कब गालियाँ देता है किसी को
अब्बास ताबिश
वक़्त लफ़्ज़ों से बनाई हुई चादर जैसा
अब्बास ताबिश
उन आँखों में कूदने वालो तुम को इतना ध्यान रहे
अब्बास ताबिश
तू भी ऐ शख़्स कहाँ तक मुझे बर्दाश्त करे
अब्बास ताबिश
तिलिस्म-ए-ख़्वाब से मेरा बदन पत्थर नहीं होता
अब्बास ताबिश
तेरी रूह में सन्नाटा है और मिरी आवाज़ में चुप
अब्बास ताबिश
तिरी मोहब्बत में गुमरही का अजब नशा था
अब्बास ताबिश
सुन रहा हूँ अभी तक मैं अपनी ही आवाज़ की बाज़गश्त
अब्बास ताबिश
शब की शब कोई न शर्मिंदा-ए-रुख़स्त ठहरे
अब्बास ताबिश
रात को जब याद आए तेरी ख़ुशबू-ए-क़बा
अब्बास ताबिश
रात कमरे में न था मेरे अलावा कोई
अब्बास ताबिश
फिर इस के ब'अद ये बाज़ार-ए-दिल नहीं लगना
अब्बास ताबिश
पस-ए-ग़ुबार भी उड़ता ग़ुबार अपना था
अब्बास ताबिश
पहले तो हम छान आए ख़ाक सारे शहर की
अब्बास ताबिश
निहाल-ए-दर्द ये दिन तुझ पे क्यूँ उतरता नहीं
अब्बास ताबिश
न ख़्वाब ही से जगाया न इंतिज़ार किया
अब्बास ताबिश
मुझ से तो दिल भी मोहब्बत में नहीं ख़र्च हुआ
अब्बास ताबिश
मोहब्बत एक दम दुख का मुदावा कर नहीं देती
अब्बास ताबिश
मिलती नहीं है नाव तो दरवेश की तरह
अब्बास ताबिश
मेरे सीने से ज़रा कान लगा कर देखो
अब्बास ताबिश
मेरा रंज-ए-मुस्तक़िल भी जैसे कम सा हो गया
अब्बास ताबिश
मसरूफ़ हैं कुछ इतने कि हम कार-ए-मोहब्बत
अब्बास ताबिश
मकीं जब नींद के साए में सुस्ताने लगें 'ताबिश'
अब्बास ताबिश