Couplets Poetry (page 312)
माथे पे लगा संदल वो हार पहन निकले
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
लुत्फ़-ए-शब-ए-मह ऐ दिल उस दम मुझे हासिल हो
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
हम गए थे उस से करते शिकवा-ए-दर्द-ए-फ़िराक़
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
हवस हम पार होएँ क्यूँकि दरिया-ए-मोहब्बत से
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
हमारी देखियो ग़फ़लत न समझे वाए नादानी
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
दिल में इक इज़्तिराब बाक़ी है
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
देखें क्या अब के असीरी हमें दिखलाती है
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
ऐ आफ़्ताब हादी-ए-कू-ए-निगार हो
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
आश्ना कोई नज़र आता नहीं याँ ऐ 'हवस'
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
तुम्हें समझाएँ तो क्या हम कि शैख़-ए-वक़्त हो माइल
मिर्ज़ा मायल देहलवी
तौबा के टूटते का है 'माइल' मलाल क्यूँ
मिर्ज़ा मायल देहलवी
तल्ख़ी तुम्हारे वाज़ में है वाइज़ो मगर
मिर्ज़ा मायल देहलवी
न काबा ही तजल्ली-गाह ठहराया न बुत-ख़ाना
मिर्ज़ा मायल देहलवी
मुझे काफ़िर ही बताता है ये वाइज़ कम-बख़्त
मिर्ज़ा मायल देहलवी
मिलें किसी से तो बद-नाम हों ज़माने में
मिर्ज़ा मायल देहलवी
मानें जो मेरी बात मुरीदान-ए-बे-रिया
मिर्ज़ा मायल देहलवी
माइल को जानते भी हो हज़रत हैं एक रिंद
मिर्ज़ा मायल देहलवी
इश्क़ भी क्या चीज़ है सहल भी दुश्वार है
मिर्ज़ा मायल देहलवी
ईमान जाए या रहे जो हो बला से हो
मिर्ज़ा मायल देहलवी
दिल क्या निगाह-ए-मस्त से मय-ख़ाना बन गया
मिर्ज़ा मायल देहलवी
अज़मत-ए-कअबा मुसल्लम है मगर बुत-कदा में
मिर्ज़ा मायल देहलवी
यूँ इंतिज़ार-ए-यार में हम उम्र भर रहे
मिर्ज़ा मासिता बेग मुंतही
उस बुत को छोड़ कर हरम-ओ-दैर पर मिटे
मिर्ज़ा मासिता बेग मुंतही
उमीद है हमें फ़र्दा हो या पस-ए-फ़र्दा
मिर्ज़ा मासिता बेग मुंतही
तुफ़ैल-ए-रूह मिरा जिस्म-ए-ज़ार बाक़ी है
मिर्ज़ा मासिता बेग मुंतही
तोहमत-ए-जुर्म-ओ-ख़ता हिर्स-ओ-हवा ग़फ़लत-ए-दिल
मिर्ज़ा मासिता बेग मुंतही
तेरे बाज़ार-ए-दहर में गर्दूं
मिर्ज़ा मासिता बेग मुंतही
तारिक-ए-दुनिया है जब से 'मुंतही'
मिर्ज़ा मासिता बेग मुंतही
सिखला रहा हूँ दिल को मोहब्बत के रंग-ढंग
मिर्ज़ा मासिता बेग मुंतही
सदा-ए-क़ुलक़ुल-ए-मीना मुझे नहीं आती
मिर्ज़ा मासिता बेग मुंतही