Couplets Poetry (page 310)
हम हैं तहज़ीब के अलम-बरदार
मोहम्मद अली साहिल
दूर रहती हैं सदा उन से बलाएँ साहिल
मोहम्मद अली साहिल
ये मंसब-ए-बुलंद मिला जिस को मिल गया
मोहम्मद अली ख़ाँ रश्की
दर्द-ए-दिल क्या बयाँ करूँ 'रश्की'
मोहम्मद अली ख़ाँ रश्की
वही दिन है हमारी ईद का दिन
मोहम्मद अली जौहर
तुझ से क्या सुब्ह तलक साथ निभेगा ऐ उम्र
मोहम्मद अली जौहर
तौहीद तो ये है कि ख़ुदा हश्र में कह दे
मोहम्मद अली जौहर
शिकवा सय्याद का बेजा है क़फ़स में बुलबुल
मोहम्मद अली जौहर
सारी दुनिया ये समझती है कि सौदाई है
मोहम्मद अली जौहर
क़त्ल-ए-हुसैन अस्ल में मर्ग-ए-यज़ीद है
मोहम्मद अली जौहर
न नमाज़ आती है मुझ को न वज़ू आता है
मोहम्मद अली जौहर
हर सीना आह है तिरे पैकाँ का मुंतज़िर
मोहम्मद अली जौहर
उस का तरकश ख़ाली होने वाला है
मोहम्मद अहमद रम्ज़
तुम आ गए हो तुम मुझ को ज़रा सँभलने दो
मोहम्मद अहमद रम्ज़
तुम आ गए हो तो मुझ को ज़रा सँभलने दो
मोहम्मद अहमद रम्ज़
सारे इम्कानात में रौशन सिर्फ़ यही दो पहलू
मोहम्मद अहमद रम्ज़
'रम्ज़' अधूरे ख़्वाबों की ये घटती बढ़ती छाँव
मोहम्मद अहमद रम्ज़
कौन पूछे मुझ से मेरी गोशा-गीरी का सबब
मोहम्मद अहमद रम्ज़
जैसे ख़ला के पस-मंज़र में रंग रंग के नक़्श-ओ-निगार
मोहम्मद अहमद रम्ज़
हर्फ़ को लफ़्ज़ न कर लफ़्ज़ को इज़हार न दे
मोहम्मद अहमद रम्ज़
इक सच की आवाज़ में हैं जीने के हज़ार आहंग
मोहम्मद अहमद रम्ज़
और कोई दुनिया है तेरी जिस की खोज करूँ
मोहम्मद अहमद रम्ज़
अल्फ़ाज़ की गिरफ़्त से है मावरा हनूज़
मोहम्मद अहमद रम्ज़
अब के वस्ल का मौसम यूँही बेचैनी में बीत गया
मोहम्मद अहमद रम्ज़
तिरी अदाओं की सादगी में किसी को महसूस भी न होगा
मुग़ीसुद्दीन फ़रीदी
सिर्फ़ अल्फ़ाज़ पे मौक़ूफ़ नहीं लुत्फ़-ए-सुख़न
मुग़ीसुद्दीन फ़रीदी
इस दौर में इंसान का चेहरा नहीं मिलता
मुग़ीसुद्दीन फ़रीदी
हम ने माँगा था सहारा तो मिली इस की सज़ा
मुग़ीसुद्दीन फ़रीदी
है 'फ़रीदी' अजब रंग-ए-बज़्म-ए-जहाँ मिट रहा है यहाँ फ़र्क़-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ
मुग़ीसुद्दीन फ़रीदी
अब किसी दर्द का शिकवा न किसी ग़म का गिला
मुग़ीसुद्दीन फ़रीदी