Couplets Poetry (page 302)

अब तक मिरी यादों से मिटाए नहीं मिटता

मोहसिन नक़वी

अब के बारिश में तो ये कार-ए-ज़ियाँ होना ही था

मोहसिन नक़वी

तन्हा खड़ा हूँ मैं भी सर-ए-कर्बला-ए-अस्र

मोहसिन एहसान

सुब्ह से शाम हुई रूठा हुआ बैठा हूँ

मोहसिन एहसान

मैं मुनक़्क़श हूँ तिरी रूह की दीवारों पर

मोहसिन एहसान

मैं ख़र्च कार-ए-ज़माना में हो चुका इतना

मोहसिन एहसान

अब दुआओं के लिए उठते नहीं हैं हाथ भी

मोहसिन एहसान

ज़िंदगी गुल है नग़्मा है महताब है

मोहसिन भोपाली

उस को चाहा था कभी ख़ुद की तरह

मोहसिन भोपाली

उस से मिल कर उसी को पूछते हैं

मोहसिन भोपाली

सूरज चढ़ा तो फिर भी वही लोग ज़द में थे

मोहसिन भोपाली

सदा-ए-वक़्त की गर बाज़-गश्त सन पाओ

मोहसिन भोपाली

रौशनी हैं सफ़र में रहते हैं

मोहसिन भोपाली

पहले जो कहा अब भी वही कहते हैं 'मोहसिन'

मोहसिन भोपाली

नैरंगी-ए-सियासत-ए-दौराँ तो देखिए

मोहसिन भोपाली

'मोहसिन' और भी निखरेगा इन शेरों का मफ़्हूम

मोहसिन भोपाली

'मोहसिन' अपनाइयत की फ़ज़ा भी तो हो

मोहसिन भोपाली

लफ़्ज़ों को ए'तिमाद का लहजा भी चाहिए

मोहसिन भोपाली

लफ़्ज़ों के एहतियात ने मअ'नी बदल दिए

मोहसिन भोपाली

क्या ख़बर थी हमें ये ज़ख़्म भी खाना होगा

मोहसिन भोपाली

कोई सूरत नहीं ख़राबी की

मोहसिन भोपाली

किस क़दर नादिम हुआ हूँ मैं बुरा कह कर उसे

मोहसिन भोपाली

ख़ंदा-ए-लब में निहाँ ज़ख़्म-ए-हुनर देखेगा कौन

मोहसिन भोपाली

जो मिले थे हमें किताबों में

मोहसिन भोपाली

जाने वाले सब आ चुके 'मोहसिन'

मोहसिन भोपाली

इस लिए सुनता हूँ 'मोहसिन' हर फ़साना ग़ौर से

मोहसिन भोपाली

इबलाग़ के लिए न तुम अख़बार देखना

मोहसिन भोपाली

हमारी जान पे दोहरा अज़ाब है 'मोहसिन'

मोहसिन भोपाली

एक मुद्दत की रिफ़ाक़त का हो कुछ तो इनआ'म

मोहसिन भोपाली

बदन को रौंदने वालो ज़मीर ज़िंदा है

मोहसिन भोपाली

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