Couplets Poetry (page 300)

हमीं हैं सोज़ हमीं साज़ हैं हमीं नग़्मा

मुईन अहसन जज़्बी

इक प्यास भरे दिल पर न हुई तासीर तुम्हारी नज़रों की

मुईन अहसन जज़्बी

दिल-ए-नाकाम थक के बैठ गया

मुईन अहसन जज़्बी

अल्लाह-रे बे-ख़ुदी कि चला जा रहा हूँ मैं

मुईन अहसन जज़्बी

ऐ मौज-ए-बला उन को भी ज़रा दो चार थपेड़े हल्के से

मुईन अहसन जज़्बी

अभी सुमूम ने मानी कहाँ नसीम से हार

मुईन अहसन जज़्बी

ज़िंदगी हम तिरे कूचे में चले आए तो हैं

मुईद रशीदी

ये हिजरतों के तमाशे, ये क़र्ज़ रिश्तों के

मुईद रशीदी

वो चाहते हैं कि हर बात मान ली जाए

मुईद रशीदी

उस बार उजालों ने मुझे घेर लिया था

मुईद रशीदी

तू मुझे ज़हर पिलाती है ये तेरा शेवा

मुईद रशीदी

सुलगती धूप में जल कर फ़क़ीर-ए-शब तिरी ख़ाक

मुईद रशीदी

कोई आता है या नहीं आता

मुईद रशीदी

ख़्वाब में तोड़ता रहता हूँ अना की ज़ंजीर

मुईद रशीदी

इसी जवाब के रस्ते सवाल आते हैं

मुईद रशीदी

हम ज़ब्त की तारीख़ के हैं बाब 'रशीदी'

मुईद रशीदी

एक हंगामा शब-ओ-रोज़ बपा रहता है

मुईद रशीदी

ऐ अक़्ल नहीं आएँगे बातों में तिरी हम

मुईद रशीदी

अब इस से पहले कि रुस्वाई अपने घर आती

मुईद रशीदी

आँखों में शब उतर गई ख़्वाबों का सिलसिला रहा

मुईद रशीदी

ये ज़ुल्म देखिए कि घरों में लगी है आग

मोहसिन ज़ैदी

सुनते हैं कि आबाद यहाँ था कोई कुम्बा

मोहसिन ज़ैदी

लिबास बदले नहीं हम ने मौसमों की तरह

मोहसिन ज़ैदी

कोई कश्ती में तन्हा जा रहा है

मोहसिन ज़ैदी

कोई अकेला तो मैं सादगी-पसंद न था

मोहसिन ज़ैदी

जैसे दो मुल्कों को इक सरहद अलग करती हुई

मोहसिन ज़ैदी

जान कर चुप हैं वगरना हम भी

मोहसिन ज़ैदी

हम ने भी देखी है दुनिया 'मोहसिन'

मोहसिन ज़ैदी

हर शख़्स यहाँ गुम्बद-ए-बे-दर की तरह है

मोहसिन ज़ैदी

दूर रहना था जब उस को 'मोहसिन'

मोहसिन ज़ैदी

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