Couplets Poetry (page 293)

आए कभी तो दश्त से वो शहर की तरफ़

मुनव्वर ख़ान ग़ाफ़िल

आ के सज्जादा-नशीं क़ैस हुआ मेरे ब'अद

मुनव्वर ख़ान ग़ाफ़िल

रात काटे नहीं कटती है किसी सूरत से

मुमताज़ मीरज़ा

न जाने कब निगह-ए-बाग़बाँ बदल जाए

मुमताज़ मीरज़ा

आगही भूलने देती नहीं हस्ती का मआल

मुमताज़ मीरज़ा

मेले में गर नज़र न आता रूप किसी मतवाली का

मुमताज़ गुर्मानी

उसी को हम समझ लेते हैं अपना सादगी देखो

मुमताज़ अहमद ख़ाँ ख़ुशतर खांडवी

तलाश-ए-सूरत-ए-तस्कीं न कर औहाम-हस्ती में

मुमताज़ अहमद ख़ाँ ख़ुशतर खांडवी

कहाँ रह जाए थक कर रह-नवर्द-ए-ग़म ख़ुदा जाने

मुमताज़ अहमद ख़ाँ ख़ुशतर खांडवी

जिस ने जी भर के तजल्ली को कभी देखा हो

मुमताज़ अहमद ख़ाँ ख़ुशतर खांडवी

जब से फ़रेब-ए-ज़ीस्त में आने लगा हूँ मैं

मुमताज़ अहमद ख़ाँ ख़ुशतर खांडवी

गुबार-ए-ज़िंदगी में लैला-ए-मक़्सूद क्या मअ'नी

मुमताज़ अहमद ख़ाँ ख़ुशतर खांडवी

ग़म-ओ-कर्ब-ओ-अलम से दूर अपनी ज़िंदगी क्यूँ हो

मुमताज़ अहमद ख़ाँ ख़ुशतर खांडवी

ग़म न अपना न अब ख़ुशी अपनी

मुमताज़ अहमद ख़ाँ ख़ुशतर खांडवी

सहर-ए-अज़ल को जो दी गई वही आज तक है मुसाफ़िरी

मुख़्तार सिद्दीक़ी

रात के बाद वो सुब्ह कहाँ है दिन के बाद वो शाम कहाँ

मुख़्तार सिद्दीक़ी

फेरा बहार का तो बरस दो बरस में है

मुख़्तार सिद्दीक़ी

नूर-ए-सहर कहाँ है अगर शाम-ए-ग़म गई

मुख़्तार सिद्दीक़ी

मेरी आँखों ही में थे अन-कहे पहलू उस के

मुख़्तार सिद्दीक़ी

मैं तो हर धूप में सायों का रहा हूँ जूया

मुख़्तार सिद्दीक़ी

क्या क्या पुकारें सिसकती देखीं लफ़्ज़ों के ज़िंदानों में

मुख़्तार सिद्दीक़ी

कभी फ़ासलों की मसाफ़तों पे उबूर हो तो ये कह सुकूँ

मुख़्तार सिद्दीक़ी

जिन ख़यालों के उलट फेर में उलझीं साँसें

मुख़्तार सिद्दीक़ी

इबरत-आबाद भी दिल होते हैं इंसानों के

मुख़्तार सिद्दीक़ी

बस्तियाँ कैसे न मम्नून हों दीवानों की

मुख़्तार सिद्दीक़ी

मुझे क्या मिला है बताऊँ क्या

मुकेश आलम

फ़साद, क़त्ल, तअस्सुब, फ़रेब, मक्कारी

मुजाहिद फ़राज़

अभी दिखाओ न तस्वीर-ए-ज़िंदगी इस को

मुजाहिद फ़राज़

वज्ह-ए-सुकूँ न बन सकीं हुस्न की दिल-नवाज़ियाँ

मुहम्मद अय्यूब ज़ौक़ी

उन की निगाह-ए-लुत्फ़ की तासीर क्या कहूँ

मुहम्मद अय्यूब ज़ौक़ी

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