Couplets Poetry (page 291)

मिट्टी का बदन कर दिया मिट्टी के हवाले

मुनव्वर राना

मिरी हथेली पे होंटों से ऐसी मोहर लगा

मुनव्वर राना

मिरे बच्चों में सारी आदतें मौजूद हैं मेरी

मुनव्वर राना

माँ ख़्वाब में आ कर ये बता जाती है हर रोज़

मुनव्वर राना

मैं राह-ए-इश्क़ के हर पेच-ओ-ख़म से वाक़िफ़ हूँ

मुनव्वर राना

मैं इसी मिट्टी से उट्ठा था बगूले की तरह

मुनव्वर राना

लिपट जाता हूँ माँ से और मौसी मुस्कुराती है

मुनव्वर राना

कुछ बिखरी हुई यादों के क़िस्से भी बहुत थे

मुनव्वर राना

किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई

मुनव्वर राना

किसी की याद आती है तो ये भी याद आता है

मुनव्वर राना

किसी के ज़ख़्म पर चाहत से पट्टी कौन बाँधेगा

मुनव्वर राना

किसी दिन मेरी रुस्वाई का ये कारन न बन जाए

मुनव्वर राना

खिलौनों की दुकानों की तरफ़ से आप क्यूँ गुज़रे

मुनव्वर राना

कल अपने-आप को देखा था माँ की आँखों में

मुनव्वर राना

जितने बिखरे हुए काग़ज़ हैं वो यकजा कर ले

मुनव्वर राना

हम सब की जो दुआ थी उसे सुन लिया गया

मुनव्वर राना

हम नहीं थे तो क्या कमी थी यहाँ

मुनव्वर राना

हँस के मिलता है मगर काफ़ी थकी लगती हैं

मुनव्वर राना

घर में रहते हुए ग़ैरों की तरह होती हैं

मुनव्वर राना

गर कभी रोना ही पड़ जाए तो इतना रोना

मुनव्वर राना

एक आँसू भी हुकूमत के लिए ख़तरा है

मुनव्वर राना

देखना है तुझे सहरा तो परेशाँ क्यूँ है

मुनव्वर राना

दौलत से मोहब्बत तो नहीं थी मुझे लेकिन

मुनव्वर राना

दौलत से मोहब्बत तो नहीं थी मुझे लेकिन

मुनव्वर राना

चलती फिरती हुई आँखों से अज़ाँ देखी है

मुनव्वर राना

भले लगते हैं स्कूलों की यूनिफार्म में बच्चे

मुनव्वर राना

बच्चों की फ़ीस उन की किताबें क़लम दवात

मुनव्वर राना

ऐ ख़ाक-ए-वतन तुझ से मैं शर्मिंदा बहुत हूँ

मुनव्वर राना

अब जुदाई के सफ़र को मिरे आसान करो

मुनव्वर राना

अब आप की मर्ज़ी है सँभालें न सँभालें

मुनव्वर राना

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