Couplets Poetry (page 290)

देखे हुए से लगते हैं रस्ते मकाँ मकीं

मुनीर नियाज़ी

दश्त-ए-बाराँ की हवा से फिर हरा सा हो गया

मुनीर नियाज़ी

डर के किसी से छुप जाता है जैसे साँप ख़ज़ाने में

मुनीर नियाज़ी

चाँद चढ़ता देखना बेहद समुंदर पर 'मुनीर'

मुनीर नियाज़ी

चमक ज़र की उसे आख़िर मकान-ए-ख़ाक में लाई

मुनीर नियाज़ी

चाहता हूँ मैं 'मुनीर' इस उम्र के अंजाम पर

मुनीर नियाज़ी

बेचैन बहुत फिरना घबराए हुए रहना

मुनीर नियाज़ी

बैठ कर मैं लिख गया हूँ दर्द-ए-दिल का माजरा

मुनीर नियाज़ी

बहुत ही सुस्त था मंज़र लहू के रंग लाने का

मुनीर नियाज़ी

बड़ी मुश्किल से ये जाना कि हिज्र-ए-यार में रहना

मुनीर नियाज़ी

अपनी ही तेग़-ए-अदा से आप घायल हो गया

मुनीर नियाज़ी

अपने घरों से दूर बनों में फिरते हुए आवारा लोगो

मुनीर नियाज़ी

ऐसा सफ़र है जिस की कोई इंतिहा नहीं

मुनीर नियाज़ी

अच्छी मिसाल बनतीं ज़ाहिर अगर वो होतीं

मुनीर नियाज़ी

अब किसी में अगले वक़्तों की वफ़ा बाक़ी नहीं

मुनीर नियाज़ी

अब कौन मुंतज़िर है हमारे लिए वहाँ

मुनीर नियाज़ी

आवाज़ दे के देख लो शायद वो मिल ही जाए

मुनीर नियाज़ी

आँखों में उड़ रही है लुटी महफ़िलों की धूल

मुनीर नियाज़ी

आदत ही बना ली है तुम ने तो 'मुनीर' अपनी

मुनीर नियाज़ी

आ गई याद शाम ढलते ही

मुनीर नियाज़ी

वुसअत-ए-सहरा भी मुँह अपना छुपा कर निकली

मुनव्वर राना

तुम ने जब शहर को जंगल में बदल डाला है

मुनव्वर राना

तुम्हें भी नींद सी आने लगी है थक गए हम भी

मुनव्वर राना

तुम्हारा नाम आया और हम तकने लगे रस्ता

मुनव्वर राना

तमाम जिस्म को आँखें बना के राह तको

मुनव्वर राना

सो जाते हैं फ़ुटपाथ पे अख़बार बिछा कर

मुनव्वर राना

फिर कर्बला के ब'अद दिखाई नहीं दिया

मुनव्वर राना

फेंकी न 'मुनव्वर' ने बुज़ुर्गों की निशानी

मुनव्वर राना

पचपन बरस की उम्र तो होने को आ गई

मुनव्वर राना

मोहब्बत एक पाकीज़ा अमल है इस लिए शायद

मुनव्वर राना

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