Couplets Poetry (page 289)

ख़याल जिस का था मुझे ख़याल में मिला मुझे

मुनीर नियाज़ी

खड़ा हूँ ज़ेर-ए-फ़लक गुम्बद-ए-सदा में 'मुनीर'

मुनीर नियाज़ी

कटी है जिस के ख़यालों में उम्र अपनी 'मुनीर'

मुनीर नियाज़ी

कल मैं ने उस को देखा तो देखा नहीं गया

मुनीर नियाज़ी

जुर्म आदम ने किया और नस्ल-ए-आदम को सज़ा

मुनीर नियाज़ी

जिन के होने से हम भी हैं ऐ दिल

मुनीर नियाज़ी

जी ख़ुश हुआ है गिरते मकानों को देख कर

मुनीर नियाज़ी

जंगलों में कोई पीछे से बुलाए तो 'मुनीर'

मुनीर नियाज़ी

जब सफ़र से लौट कर आए तो कितना दुख हुआ

मुनीर नियाज़ी

जानते थे दोनों हम उस को निभा सकते नहीं

मुनीर नियाज़ी

जानता हूँ एक ऐसे शख़्स को मैं भी 'मुनीर'

मुनीर नियाज़ी

इम्तिहाँ हम ने दिए इस दार-ए-फ़ानी में बहुत

मुनीर नियाज़ी

हूँ मकाँ में बंद जैसे इम्तिहाँ में आदमी

मुनीर नियाज़ी

हम भी 'मुनीर' अब दुनिया-दारी कर के वक़्त गुज़ारेंगे

मुनीर नियाज़ी

हस्ती ही अपनी क्या है ज़माने के सामने

मुनीर नियाज़ी

है 'मुनीर' तेरी निगाह में

मुनीर नियाज़ी

है 'मुनीर' हैरत-ए-मुस्तक़िल

मुनीर नियाज़ी

घटा देख कर ख़ुश हुईं लड़कियाँ

मुनीर नियाज़ी

ग़म की बारिश ने भी तेरे नक़्श को धोया नहीं

मुनीर नियाज़ी

ग़ैरों से मिल के ही सही बे-बाक तो हुआ

मुनीर नियाज़ी

ग़ैर से नफ़रत जो पा ली ख़र्च ख़ुद पर हो गई

मुनीर नियाज़ी

ग़ैर से नफ़अत जो पा ली ख़र्च ख़ुद पर हो गई

मुनीर नियाज़ी

गली के बाहर तमाम मंज़र बदल गए थे

मुनीर नियाज़ी

एक वारिस हमेशा होता है

मुनीर नियाज़ी

इक तेज़ रा'द जैसी सदा हर मकान में

मुनीर नियाज़ी

एक दश्त-ए-ला-मकाँ फैला है मेरे हर तरफ़

मुनीर नियाज़ी

इक और दरिया का सामना था 'मुनीर' मुझ को

मुनीर नियाज़ी

दिन भर जो सूरज के डर से गलियों में छुप रहते हैं

मुनीर नियाज़ी

दिल की ख़लिश तो साथ रहेगी तमाम उम्र

मुनीर नियाज़ी

दिल अजब मुश्किल में है अब अस्ल रस्ते की तरफ़

मुनीर नियाज़ी

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