Couplets Poetry (page 288)
'मुनीर' इस मुल्क पर आसेब का साया है या क्या है
मुनीर नियाज़ी
'मुनीर' इस ख़ूबसूरत ज़िंदगी को
मुनीर नियाज़ी
'मुनीर' अच्छा नहीं लगता ये तेरा
मुनीर नियाज़ी
मुझ से बहुत क़रीब है तू फिर भी ऐ 'मुनीर'
मुनीर नियाज़ी
मुद्दत के ब'अद आज उसे देख कर 'मुनीर'
मुनीर नियाज़ी
मोहब्बत अब नहीं होगी ये कुछ दिन ब'अद में होगी
मुनीर नियाज़ी
मिलती नहीं पनाह हमें जिस ज़मीन पर
मुनीर नियाज़ी
मेरी सारी ज़िंदगी को बे-समर उस ने किया
मुनीर नियाज़ी
मिरे पास ऐसा तिलिस्म है जो कई ज़मानों का इस्म है
मुनीर नियाज़ी
मकान-ए-ज़र लब-ए-गोया हद-ए-सिपेह्र-ओ-ज़मीं
मुनीर नियाज़ी
मकाँ है क़ब्र जिसे लोग ख़ुद बनाते हैं
मुनीर नियाज़ी
मैं उस को देख के चुप था उसी की शादी में
मुनीर नियाज़ी
मैं तो 'मुनीर' आईने में ख़ुद को तक कर हैरान हुआ
मुनीर नियाज़ी
मैं ख़ुश नहीं हूँ बहुत दूर उस से होने पर
मुनीर नियाज़ी
मैं हूँ भी और नहीं भी अजीब बात है ये
मुनीर नियाज़ी
मैं बहुत कमज़ोर था इस मुल्क में हिजरत के बाद
मुनीर नियाज़ी
महक अजब सी हो गई पड़े पड़े संदूक़ में
मुनीर नियाज़ी
लिए फिरा जो मुझे दर-ब-दर ज़माने में
मुनीर नियाज़ी
लाई है अब उड़ा के गए मौसमों की बास
मुनीर नियाज़ी
क्यूँ 'मुनीर' अपनी तबाही का ये कैसा शिकवा
मुनीर नियाज़ी
कुछ वक़्त चाहते थे कि सोचें तिरे लिए
मुनीर नियाज़ी
कुछ दिन के बा'द उस से जुदा हो गए 'मुनीर'
मुनीर नियाज़ी
कोयलें कूकीं बहुत दीवार-ए-गुलशन की तरफ़
मुनीर नियाज़ी
कोई तो है 'मुनीर' जिसे फ़िक्र है मिरी
मुनीर नियाज़ी
कितने यार हैं फिर भी 'मुनीर' इस आबादी में अकेला है
मुनीर नियाज़ी
किसी को अपने अमल का हिसाब क्या देते
मुनीर नियाज़ी
किसी अकेली शाम की चुप में
मुनीर नियाज़ी
ख़्वाहिशें हैं घर से बाहर दूर जाने की बहुत
मुनीर नियाज़ी
ख़्वाब होते हैं देखने के लिए
मुनीर नियाज़ी
ख़ुश्बू की दीवार के पीछे कैसे कैसे रंग जमे हैं
मुनीर नियाज़ी