Couplets Poetry (page 287)

ये नमाज़-ए-अस्र का वक़्त है

मुनीर नियाज़ी

ये मेरे गिर्द तमाशा है आँख खुलने तक

मुनीर नियाज़ी

ये कैसा नश्शा है मैं किस अजब ख़ुमार में हूँ

मुनीर नियाज़ी

ये अजनबी सी मंज़िलें और रफ़्तगाँ की याद

मुनीर नियाज़ी

वो खड़ा है एक बाब-ए-इल्म की दहलीज़ पर

मुनीर नियाज़ी

वो जो मेरे पास से हो कर किसी के घर गया

मुनीर नियाज़ी

वो जिस को मैं समझता रहा कामयाब दिन

मुनीर नियाज़ी

वक़्त किस तेज़ी से गुज़रा रोज़-मर्रा में 'मुनीर'

मुनीर नियाज़ी

वहम ये तुझ को अजब है ऐ जमाल-ए-कम-नुमा

मुनीर नियाज़ी

उठा तू जा भी चुका था अजीब मेहमाँ था

मुनीर नियाज़ी

उस को भी तो जा कर देखो उस का हाल भी मुझ सा है

मुनीर नियाज़ी

उस हुस्न का शेवा है जब इश्क़ नज़र आए

मुनीर नियाज़ी

तुम मेरे लिए इतने परेशान से क्यूँ हो

मुनीर नियाज़ी

तू भी जैसे बदल सा जाता है

मुनीर नियाज़ी

थके लोगों को मजबूरी में चलते देख लेता हूँ

मुनीर नियाज़ी

था 'मुनीर' आग़ाज़ ही से रास्ता अपना ग़लत

मुनीर नियाज़ी

तेज़ थी इतनी कि सारा शहर सूना कर गई

मुनीर नियाज़ी

तन्हा उजाड़ बुर्जों में फिरता है तू 'मुनीर'

मुनीर नियाज़ी

सुन बस्तियों का हाल जो हद से गुज़र गईं

मुनीर नियाज़ी

सुब्ह-ए-काज़िब की हवा में दर्द था कितना 'मुनीर'

मुनीर नियाज़ी

शायद कोई देखने वाला हो जाए हैरान

मुनीर नियाज़ी

शहर में वो मो'तबर मेरी गवाही से हुआ

मुनीर नियाज़ी

शहर की गलियों में गहरी तीरगी गिर्यां रही

मुनीर नियाज़ी

शहर का तब्दील होना शाद रहना और उदास

मुनीर नियाज़ी

रोया था कौन कौन मुझे कुछ ख़बर नहीं

मुनीर नियाज़ी

रहना था उस के साथ बहुत देर तक मगर

मुनीर नियाज़ी

रात इक उजड़े मकाँ पर जा के जब आवाज़ दी

मुनीर नियाज़ी

क़बा-ए-ज़र्द पहन कर वो बज़्म में आया

मुनीर नियाज़ी

पूछते हैं कि क्या हुआ दिल को

मुनीर नियाज़ी

नींद का हल्का गुलाबी सा ख़ुमार आँखों में था

मुनीर नियाज़ी

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