Couplets Poetry (page 286)
दस बीस हर महीने में अबरू नज़र पड़े
मुनीर शिकोहाबादी
दम भर रहे हबाब-ए-नमत काएनात में
मुनीर शिकोहाबादी
चेहरा तमाम सुर्ख़ है महरम के रंग से
मुनीर शिकोहाबादी
बोसे हैं बे-हिसाब हर दिन के
मुनीर शिकोहाबादी
बोसा-ए-लब ग़ैर को देते हो तुम
मुनीर शिकोहाबादी
बिस्मिलों से बोसा-ए-लब का जो वा'दा हो गया
मुनीर शिकोहाबादी
बिगड़ी हुई है सारी हसीनों की बनावट
मुनीर शिकोहाबादी
भटके फिरे दो अमला-ए-दैर-ओ-हरम में हम
मुनीर शिकोहाबादी
बे-तकल्लुफ़ आ गया वो मह दम-ए-फ़िक्र-ए-सुख़न
मुनीर शिकोहाबादी
बे-इल्म शाइरों का गिला क्या है ऐ 'मुनीर'
मुनीर शिकोहाबादी
बस कि है पेश-ए-नज़र पस्त-ओ-बुलंद-ए-आलम
मुनीर शिकोहाबादी
बरहमन का'बे में आया शैख़ पहूँचा दैर में
मुनीर शिकोहाबादी
अशआ'र मेरे सुन के वो ख़ामोश हो गया
मुनीर शिकोहाबादी
ऐ रश्क-ए-माह रात को मुट्ठी न खोलना
मुनीर शिकोहाबादी
ऐ बुत ये है नमाज़ कि है घात क़त्ल की
मुनीर शिकोहाबादी
अब के बहार-ए-हुस्न-ए-बुताँ है कमाल पर
मुनीर शिकोहाबादी
आते नहीं हैं दीदा-गिर्यां के सामने
मुनीर शिकोहाबादी
आस्तीन-ए-सब्र से बाहर न निकलेगा अगर
मुनीर शिकोहाबादी
आशिक़ बना के हम को जलाते हैं शम्अ'-रू
मुनीर शिकोहाबादी
आँखों में नहीं सिलसिला-ए-अश्क शब-ओ-रोज़
मुनीर शिकोहाबादी
आँखों में खटकती ही रही दौलत-ए-दुनिया
मुनीर शिकोहाबादी
आँखें ख़ुदा ने बख़्शी हैं रोने के वास्ते
मुनीर शिकोहाबादी
'सैफ़ी' मेरे उजले उजले कोट पर
मुनीर सैफ़ी
कोई दो मिनट हिल गई थी ज़मीं
मुनीर सैफ़ी
ख़ौफ़ हर घर से झाँकता होगा
मुनीर सैफ़ी
ज़िंदा रहें तो क्या है जो मर जाएँ हम तो क्या
मुनीर नियाज़ी
ज़िंदा लोगों की बूद-ओ-बाश में हैं
मुनीर नियाज़ी
ज़वाल-ए-अस्र है कूफ़े में और गदागर हैं
मुनीर नियाज़ी
ज़मीं के गिर्द भी पानी ज़मीं की तह में भी
मुनीर नियाज़ी
ये सफ़र मालूम का मा'लूम तक है ऐ 'मुनीर'
मुनीर नियाज़ी