Couplets Poetry (page 285)
करते हैं मस्जिदों में शिकवा-ए-मस्ताँ ज़ाहिद
मुनीर शिकोहाबादी
करता रहा लुग़ात की तहक़ीक़ उम्र भर
मुनीर शिकोहाबादी
कहते हैं सब देख कर बेताब मेरा उज़्व उज़्व
मुनीर शिकोहाबादी
कभी पयाम न भेजा बुतों ने मेरे पास
मुनीर शिकोहाबादी
का'बे से मुझ को लाई सवाद-ए-कुनिश्त में
मुनीर शिकोहाबादी
कब पान रक़ीबों को इनायत नहीं होते
मुनीर शिकोहाबादी
जिस रोज़ मैं गिनता हूँ तिरे आने की घड़ियाँ
मुनीर शिकोहाबादी
झूटी बातों की तजल्ली नज़र आए ऐसे
मुनीर शिकोहाबादी
झूटी बातें मुझे याद आईं जो उस की शब-ए-हिज्र
मुनीर शिकोहाबादी
जाती है दूर बात निकल कर ज़बान से
मुनीर शिकोहाबादी
जब कभी मस्की कटोरी क्या सदा पैदा हुई
मुनीर शिकोहाबादी
जब बढ़ गई उम्र घट गई ज़ीस्त
मुनीर शिकोहाबादी
जान कर उस बुत का घर काबा को सज्दा कर लिया
मुनीर शिकोहाबादी
जान देता हूँ मगर आती नहीं
मुनीर शिकोहाबादी
इन रोज़ों लुत्फ़-ए-हुस्न है आओ तो बात है
मुनीर शिकोहाबादी
हुज़ूर-ए-दुख़्तर-ए-रज़ हाथ पाँव काँपते हैं
मुनीर शिकोहाबादी
हो गया मामूर आलम जब किया दरबार-ए-आम
मुनीर शिकोहाबादी
हो गया हूँ मैं नक़ाब-ए-रू-ए-रौशन पर फ़क़ीर
मुनीर शिकोहाबादी
हाथ मिलवाते हो तरसाए गिलौरी के लिए
मुनीर शिकोहाबादी
हमेशा मय-कदे में ख़ुश-क़दों का मजमा' है
मुनीर शिकोहाबादी
गर्मी-ए-हुस्न की मिदहत का सिला लेते हैं
मुनीर शिकोहाबादी
गर्मी में तेरे कूचा-नशीनों के वास्ते
मुनीर शिकोहाबादी
गालियाँ ज़ख़्म-ए-कुहन को देख कर देती हो क्यूँ
मुनीर शिकोहाबादी
फ़र्ज़ है दरिया-दिलों पर ख़ाकसारों की मदद
मुनीर शिकोहाबादी
एहसान नहीं ख़्वाब में आए जो मिरे पास
मुनीर शिकोहाबादी
दिल ले के पलकें फिर गईं ज़ुल्फ़ों की आड़ में
मुनीर शिकोहाबादी
दीदार का मज़ा नहीं बाल अपने बाँध लो
मुनीर शिकोहाबादी
देखा है आशिक़ों ने बरहमन की आँख से
मुनीर शिकोहाबादी
दौलत के दाँत कुंद किए मेरे हिर्स ने
मुनीर शिकोहाबादी
दश्त-ए-वहशत में नहीं मिलता है साया काँपता
मुनीर शिकोहाबादी