Couplets Poetry (page 284)

सब ने लूटे उन के जल्वे के मज़े

मुनीर शिकोहाबादी

रोज़ दिल-हा-ए-मै-कशाँ टूटे

मुनीर शिकोहाबादी

रिंदों को पाबंदी-ए-दुनिया कहाँ

मुनीर शिकोहाबादी

पाया तबीब ने जो तिरी ज़ुल्फ़ का मरीज़

मुनीर शिकोहाबादी

पहुँचा है उस के पास ये आईना टूट के

मुनीर शिकोहाबादी

पड़ गई जान जो उस तिफ़्ल ने पत्थर मारे

मुनीर शिकोहाबादी

नमाज़ शुक्र की पढ़ता है जाम तोड़ के शैख़

मुनीर शिकोहाबादी

मुँह तक भी ज़ोफ़ से नहीं आ सकती दिल की बात

मुनीर शिकोहाबादी

मुंडेरों पर छिड़क दे अपने कुश्तों का लहू ऐ गुल

मुनीर शिकोहाबादी

मुझ को अपने साथ ही तेरे सुलाने की हवस

मुनीर शिकोहाबादी

मिल मिल गए हैं ख़ाक में लाखों दिल-ए-रौशन

मुनीर शिकोहाबादी

मस्तों में फूट पड़ गई आते ही यार के

मुनीर शिकोहाबादी

मलते हैं ख़ूब-रू तिरे ख़ेमे से छातियाँ

मुनीर शिकोहाबादी

मैं क्या दिखाई देती नहीं बुलबुलों को भी

मुनीर शिकोहाबादी

मैं जुस्तुजू से कुफ़्र में पहुँचा ख़ुदा के पास

मुनीर शिकोहाबादी

लेटे जो साथ हाथ लगा बोसा-ए-दहन

मुनीर शिकोहाबादी

लगाईं ताक के उस मस्त ने जो तलवारें

मुनीर शिकोहाबादी

लग गई आग आतिश-ए-रुख़ से नक़ाब-ए-यार में

मुनीर शिकोहाबादी

क्या मज़ा पर्दा-ए-वहदत में है खुलता नहीं हाल

मुनीर शिकोहाबादी

कुफ्र-ओ-इस्लाम ने मक़्सद को पहुँचने न दिया

मुनीर शिकोहाबादी

कुफ्र-ओ-इस्लाम में तौलें जो हक़ीक़त तेरी

मुनीर शिकोहाबादी

कोठे पे चेहरा-ए-पुर-नूर दिखाया सर-ए-शाम

मुनीर शिकोहाबादी

किसी से उठ नहीं सकने का बोझ मस्तों का

मुनीर शिकोहाबादी

किस तरह ख़ुश हों शाम को वो चाँद देख कर

मुनीर शिकोहाबादी

किब्र भी है शिर्क ऐ ज़ाहिद मुवह्हिद के हुज़ूर

मुनीर शिकोहाबादी

की तर्क मैं ने शैख़-ओ-बरहमन की पैरवी

मुनीर शिकोहाबादी

ख़ूब ताज़ीर-ए-गुनाह-ए-इश्क़ है

मुनीर शिकोहाबादी

खाते हैं अंगूर पीते हैं शराब

मुनीर शिकोहाबादी

ख़ाकसारों में नहीं ऐसी किसी की तौक़ीर

मुनीर शिकोहाबादी

ख़ाल-ओ-ख़त से ऐब उस के रू-ए-अक़्दस को नहीं

मुनीर शिकोहाबादी

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