Couplets Poetry (page 283)

जो तेरे गुनह बख़्शेगा वाइ'ज़ वो मिरे भी

मुंशी देबी प्रसाद सहर बदायुनी

हुजूम-ए-रंज-ओ-ग़म-ओ-दर्द है मरूँ क्यूँकर

मुंशी देबी प्रसाद सहर बदायुनी

हिदायत शैख़ करते थे बहुत बहर-ए-नमाज़ अक्सर

मुंशी देबी प्रसाद सहर बदायुनी

हर इक फ़िक़रे पे है झिड़की तो है हर बात पर गाली

मुंशी देबी प्रसाद सहर बदायुनी

चार बोसे तो दिया कीजिए तनख़्वाह मुझे

मुंशी देबी प्रसाद सहर बदायुनी

आँख अपनी तिरी अबरू पे जमी रहती है

मुंशी देबी प्रसाद सहर बदायुनी

ज़िंदा-ए-जावेद हैं मारा जिन्हें उस शोख़ ने

मुनीर शिकोहाबादी

ज़ाहिदो पूजा तुम्हारी ख़ूब होगी हश्र में

मुनीर शिकोहाबादी

याद उस बुत की नमाज़ों में जो आई मुझ को

मुनीर शिकोहाबादी

विर्द-ए-इस्म-ए-ज़ात खोला चाहता है ये गिरह

मुनीर शिकोहाबादी

वहशत में बसर होते हैं अय्याम-ए-शबाब आह

मुनीर शिकोहाबादी

वहाँ पहुँच नहीं सकतीं तुम्हारी ज़ुल्फ़ें भी

मुनीर शिकोहाबादी

उस्ताद के एहसान का कर शुक्र 'मुनीर' आज

मुनीर शिकोहाबादी

उसी हूर की रंगत उड़ी रोने से हमारे

मुनीर शिकोहाबादी

उस बुत के नहाने से हुआ साफ़ ये पानी

मुनीर शिकोहाबादी

उलझा है मगर ज़ुल्फ़ में तक़रीर का लच्छा

मुनीर शिकोहाबादी

तेरी फ़ुर्क़त में शराब-ए-ऐश का तोड़ा हुआ

मुनीर शिकोहाबादी

तिरे कूचे से जुदा रोते हैं शब को आशिक़

मुनीर शिकोहाबादी

तेग़-ए-अबरू के मुझे ज़ख़्म-ए-कुहन याद आए

मुनीर शिकोहाबादी

तारीफ़ रोज़ लेते हो अपने ग़ुरूर की

मुनीर शिकोहाबादी

सुर्ख़ी शफ़क़ की ज़र्द हो गालों के सामने

मुनीर शिकोहाबादी

सुनती है रोज़ नग़्मा-ए-ज़ंजीर-ए-आशिक़ाँ

मुनीर शिकोहाबादी

सिलसिला गबरू मुसलमाँ की अदावत का मिटा

मुनीर शिकोहाबादी

शुक्र है जामा से बाहर वो हुआ ग़ुस्से में

मुनीर शिकोहाबादी

शर्म कब तक ऐ परी ला हाथ कर इक़रार-ए-वस्ल

मुनीर शिकोहाबादी

शबनम की है अंगिया तले अंगिया की पसीना

मुनीर शिकोहाबादी

सरसों जो फूली दीदा-ए-जाम-ए-शराब में

मुनीर शिकोहाबादी

सख़्ती-ए-दहर हुए बहर-ए-सुख़न में आसाँ

मुनीर शिकोहाबादी

सदमे से बाल शीशा-ए-गर्दूँ में पड़ गया

मुनीर शिकोहाबादी

सब्र कब तक राह पैदा हो कि ऐ दिल जान जाए

मुनीर शिकोहाबादी

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