Couplets Poetry (page 282)
वो निगाह-ए-शर्मगीं हो या किसी का इंकिसार
मुंशी नौबत राय नज़र लखनवी
वहशियों को क़ैद से छूटे हुए मुद्दत हुई
मुंशी नौबत राय नज़र लखनवी
तुम ऐसे बे-ख़बर भी शाज़ होंगे इस ज़माने में
मुंशी नौबत राय नज़र लखनवी
तम्हीद थी जुनूँ की गरेबाँ हुआ जो चाक
मुंशी नौबत राय नज़र लखनवी
सुनता हूँ कि ख़िर्मन से है बिजली को बहुत लाग
मुंशी नौबत राय नज़र लखनवी
गुफ़्तुगू की तुम से आदत हो गई है वर्ना में
मुंशी नौबत राय नज़र लखनवी
फ़िक्र-ए-मआल थी न ग़म-ए-रोज़गार था
मुंशी नौबत राय नज़र लखनवी
फ़ना होने में सोज़-ए-शम'अ की मिन्नत-कशी कैसी
मुंशी नौबत राय नज़र लखनवी
देखना है किस में अच्छी शक्ल आती है नज़र
मुंशी नौबत राय नज़र लखनवी
बनने लगे हैं दाग़ सितारे ख़ुशा नसीब
मुंशी नौबत राय नज़र लखनवी
वो हवा-ख़्वाह-ए-नसीम-ए-ज़ुल्फ़ हूँ मैं तीरा-बख़्त
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
सरिश्क-ए-चश्म दिखाते हैं गर्मियाँ अपनी
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
साफ़ क्या हो सोहबत-ए-ज़ाहिर से बातिन का ग़ुबार
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
रोता हूँ मैं तसव्वुर-ए-ज़ुल्फ़-ए-सियाह में
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
न शरमाओ आँखें मिला कर तो देखो
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
मुझ को रोते देख कर पास आए वो तफ़्हीम को
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
मिरी जानिब को करवट ले के गर मुझ से लिपट जाओ
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
मैं वो शैदा-ए-गेसू हूँ कि अक्सर मौसम-ए-गुल में
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
जो हुस्न-ओ-इश्क़ का हम-वज़्न इम्तिहाँ ठहरा
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
हट न कर ऐ दुख़्त-ए-रज़ बेताबियाँ बढ़ जाएँगी
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
दिल है निसार मर्दुमक-ए-चश्म-ए-दोस्त पर
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
देखो निगाह-ए-शौक़ से मेरी तरफ़ मुझे
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
ब-शक्ल-ए-नाख़ुन-ए-अंगुश्त सर कटाने से
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
अदब बख़्शा है ऐसा रब्त-ए-अल्फ़ाज़-ए-मुनासिब ने
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
अदब बख़्शा है ऐसा रब्त-ए-अल्फ़ाज़-ए-मुनासिब ने
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
शायद मिज़ाज हम से मुकद्दर है यार का
मुंशी देबी प्रसाद सहर बदायुनी
क़श्क़ा नहीं पेशानी पे उस माह-जबीं के
मुंशी देबी प्रसाद सहर बदायुनी
न लड़ाओ नज़र रक़ीबों से
मुंशी देबी प्रसाद सहर बदायुनी
मलक-उल-मौत मोअज़्ज़िन है मिरा वस्ल की रात
मुंशी देबी प्रसाद सहर बदायुनी
काफ़िर हो फिर जो शरअ' का कुछ भी करे ख़याल
मुंशी देबी प्रसाद सहर बदायुनी