Couplets Poetry (page 281)

सजनी की आँखों में छुप कर जब झाँका

मुसव्विर सब्ज़वारी

सफ़-ए-मुनाफ़िक़ाँ में फिर वो जा मिला तो क्या अजब

मुसव्विर सब्ज़वारी

रिश्तों का बोझ ढोना दिल दिल में कुढ़ते रहना

मुसव्विर सब्ज़वारी

न टूट कर इतना हम को चाहो कि रो पड़ें हम

मुसव्विर सब्ज़वारी

न सोचो तर्क-ए-तअल्लुक़ के मोड़ पर रुक कर

मुसव्विर सब्ज़वारी

मिरे बच्चे तिरा बचपन तो मैं ने बेच डाला

मुसव्विर सब्ज़वारी

मैं संग-ए-रह नहीं जो उठा कर तू फेंक दे

मुसव्विर सब्ज़वारी

मैं संग-ए-रह हूँ तो ठोकर की ज़द पे आऊँगा

मुसव्विर सब्ज़वारी

किया न तर्क-ए-मरासिम पे एहतिजाज उस ने

मुसव्विर सब्ज़वारी

किसी को क़िस्सा-ए-पाकी-ए-चश्म याद नहीं

मुसव्विर सब्ज़वारी

ख़त्म होने दे मिरे साथ ही अपना भी वजूद

मुसव्विर सब्ज़वारी

कनार-ए-आब हवा जब भी सनसनाती है

मुसव्विर सब्ज़वारी

जो ख़स-ए-बदन था जला बहुत कई निकहतों की तलाश में

मुसव्विर सब्ज़वारी

जिसे मैं छू नहीं सकता दिखाई क्यूँ वो देता है

मुसव्विर सब्ज़वारी

इसी उमीद पे जलती हैं दश्त दश्त आँखें

मुसव्विर सब्ज़वारी

हिसार-ए-गोश-ए-समाअत की दस्तरस में कहाँ

मुसव्विर सब्ज़वारी

हमारे बीच में इक और शख़्स होना था

मुसव्विर सब्ज़वारी

गुज़रते पत्तों की चाप होगी तुम्हारे सेहन-ए-अना के अंदर

मुसव्विर सब्ज़वारी

फ़ैसला थे वक़्त का फिर बे-असर कैसे हुए

मुसव्विर सब्ज़वारी

देख वो दश्त की दीवार है सब का मक़्तल

मुसव्विर सब्ज़वारी

अज़ाबों से टपकती ये छतें बरसों चलेंगी

मुसव्विर सब्ज़वारी

अपने होने का कुछ एहसास न होने से हुआ

मुसव्विर सब्ज़वारी

आँखें यूँ बरसीं पैराहन भीग गया

मुसव्विर सब्ज़वारी

मुझे की गई है ये पेशकश कि सज़ा में होंगी रियायतें

मुर्तज़ा बिरलास

माना कि तेरा मुझ से कोई वास्ता नहीं

मुर्तज़ा बिरलास

चेहरे की चाँदनी पे न इतना भी मान कर

मुर्तज़ा बिरलास

सहारा न देती अगर मौज-ए-तूफ़ाँ

मुक़ीम एहसान कलीम

यादगार-ए-ज़माना हैं हम लोग

मुंतज़िर लखनवी

या दिल है मिरा या तिरा नक़्श-ए-कफ़-ए-पा है

मुंशी नौबत राय नज़र लखनवी

वो शम्अ नहीं हैं कि हों इक रात के मेहमाँ

मुंशी नौबत राय नज़र लखनवी

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